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सेठ गृहपति कुण्डकोलिक को श्रमणोपासक बना कर अहिच्छत्रा' और गजपुर' होते हुए पोलासपुर आए। यहा भगवान् सद्दालपुत्र नामक कुम्हार की प्रार्थना पर उसकी भाण्ड-शाला मे ठहरे। सद्दालपुत्र को जैन-शास्त्रो ने तीन करोड स्वर्ण मुद्रामो का एव दस हजार गौत्रो का स्वामी लिखा है। वह मखलिपुत्र गोशालक के आजीवक सम्प्रदाय का एक वडा स्तम्भ माना जाता था, अत वह नियतिवादी था-अर्थात् वह 'यदभावी न तद् भावी, भावी चेन्न तदन्यथा'-जो नही होना वह नही होता और जो होना है वह होता ही है"- इस सिद्धान्त को माननेवाला था। प्रभु महावीर ने उसे नाना युक्तियो से इस मिथ्याबाद से मुक्त कर श्रम और पुरुषार्थ का महत्व समझाया और वह भी श्रमणोपासक बनकर भगवान महावीर की धर्माचार्य के रूप मे आराधना करने लगा।
यद्यपि मखलिपुत्र गोशालक ने वहा आकर भगवान् महावीर को महामाहण (ज्ञान-दर्शन के धारक), महागोप (सासारिक लोगो के रक्षक), महा-धर्म-कथी (धर्म-तत्त्व के उपदेशक) और महा निर्यामक (ससार-सागर से तारनेवाले) आदि कह कर भगवान् महावीर की कपट प्रशसाए करके उसे पुनः अपने मत मे लौटाना चाहा, परन्तु उसकी श्रमण-श्रेष्ठ महावीर के चरणो में उत्पन्न श्रद्धा ने उसे स्थिर रखा और गोशालक को निराश होकर लौट जाना पड़ा।
पोलासपुर से प्रभु महावीर पुन. वाणिज्यग्राम पधारे और उन्होने यही पर वर्षावास किया। बाइसवां चातुर्मास राजगृह में
वर्षावास की पूर्णता पर प्रभु श्री सघ के साथ विहार करते हुए राजगृह पधारे। राजगृह के समवसरण मे गाथापति महाशतक श्रमणोपासक बना।
महाशतक २४ करोड स्वर्ण मुद्राओ का स्वामी और ८० हजार
१ अहिच्छना यह उत्तर प्रदेश मे बरेली से लगभग २० मील दूर एक नगर
था। पुरातत्त्ववेत्ता यहाँ के ध्वसावशेषो का अध्ययन कर रहे है । २ गजपुर यह हस्तिनापुर का अन्य नाम था।
पञ्च-कल्याणक]
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