________________
श्रेणिक को वर्तमान और भावी जीवन के मध्य का नरक-वास त्रस्त कर रहा था। उसने वारम्वार प्रभु-चरणो मे नरक से मुक्ति के उपाय पूछे, तो भगवान ने उसे कहा-"श्रेणिक | यदि 'राजगृह' की कपिलाब्राह्मणी से दान करवा दो तो तुम्हारी मुक्ति हो सकती है।' श्रेणिक ने अनेक उपाय किये, परन्तु कपिला दान के लिये प्रस्तुत न हुई। राजा ने जर्वदस्ती दान करवाया तो वह बोली-"दान मैं नही राज-कर्मचारी कर रहा है।"
उसने भगवान् मे अन्य उपाय पूछा तो भगवान् ने कहा-"यदि कालशौकरिक से हिंसा-कम छुडवादो तो तुम नरक-याचना से मुक्त हो, सकते हो।" श्रेणिक ने अनेक प्रलोभन दिए, भय दिखाया, परन्तु कालशौकरिक ने वध-कर्म का त्याग नही किया। राजा ने उसे एक, कुए मे लटकवा दिया, वह वहा पर भी हथेली पर अगुलियां फेर-फेर; कर भावना से हिमा करता ही रहा ।
निराश श्रेणिक ने अन्य उपाय पूछा तो भगवान ने कहा"यदि तुम्हारी दादी दर्शनार्थ आ जाए तो तुम नरक से मुक्त हो सकते हो।' श्रेणिक ने दादी से अनेक प्रकार की विनय की, परन्तु वह नही. मानी । जव श्रेणिक ने उसे बलात् दर्शनार्थ ले जाने के लिये पालकी: मे विठलाया तो उसने मार्ग मे अपने हाथो से अपनी आखे, फोड ली।
___ श्रेणिक असफल होकर पुन प्रभु-चरणो मे पहुच कर अन्य उपाय पूछने लगा। भगवान् ने कहा-'राजगृह का पूनिया श्रावक यदि तुम्हे एक 'सामायिक' बेच दे तो तुम नरक-से मुक्ति प्राप्त कर सकते हो। श्रेणिक ने पूनिया श्रावक से अनेक विध प्रार्थनाए की, परन्तु वह एक ही बात कहता-'राजन् ! सामायिक का मुझे मूल्य पता नही, जिसने तुम से सामायिक खरीदने के लिये कहा है उसी से जाकर सामायिक का मूल्य पूछ प्रायो। 'श्रेणिक पुन. प्रभु-चरणो मे आया और सविनय वोला-'भगवन् । सामायिक का मूल्य प्राप ही बताए । पूनिया को उसका मूल्य पता नही है । तव भगवान् ने वहा-श्रेकिण ! सामायिक तो आत्म-अवस्थिति है, समता में स्थिर होना है रागोप से मुक्त होकर अध्यात्म-जीवन में प्रवेश है। क्या यह मूल्य चुका सकोगे ? हिमालय के पञ्च-कल्याणक
.00