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________________ अब राजा श्रेणिक ने भगवान की ओर विस्मित दृष्टि से देखा और बूढे की चेष्टाग्रो के विषय मे पूछा । भगवान ने मुस्कराते हुए कहा"उस देव पुरुष वृद्ध ने जो कुछ कहा है उसमे जीवन का गूढतम रहस्य छिपा हुआ है। सव प्रथम उसने तुमसे कहा 'चिरकाल नक जीते रहो।' उसका आशय यह था कि इस संसार में तुम्हे सभी मुम्ब प्राप्त हैं, परन्तु मृत्यु के अनन्तर तुम्हे नरक मे जाना होगा, अत. तुम्हारे लिये जब तक जीवन है तभी तक अच्छा है। मर कर तो तुम्हें नरक में जाना ही होगा।" उसने मुझ से कहा- 'तुम मर क्यो नहीं जाते ?' उसका अभिप्राय यह था कि तुमने 'अरिहन्त' अवस्था प्राप्त कर ली है, अव भी शारीरिक वन्धनो मे क्यो ववे वैठे हो ? मरण अर्थात् मुक्ति को क्यो नही स्वीकार करते ?" उसने अभय कुमार से कहा तुम चाहे जीयो, चाहे मरो, क्योकि इस वचन से उसका आशय यह था कि अभय कुमार को यहां राजसी वैभव प्राप्त है, अत वह यहा सुखी है और उसकी पवित्र भावनाए उसे देवलोक प्रदान करेगी, अत: उसके लिये जीवन भी मुखमय है और मरण भी, अत उसके, वर्तमान जीवन और भावी देवजीवन दोनो ही सुख-रूप है, इसी दृष्टि से उसका जीवन और मरण समान है। वृद्ध ने कालशौकरिक मे कहा-'न मरो न जीओ,' क्योकि कालशौकरिक कसाई है, उसका जीवन हिंसामय है और साथ ही वह नानाविध सासारिक क्प्टो से भी ग्रस्त है, अत उसका जीवन निस्सार है। कालशौकरिक ने मर कर नरक मे जाना है, अत. उसका मरण भी दुखदायी है, इसलिये वह न मरे और न जीए। नरक-मुक्ति के उपाय . वृद्ध देव-पुरुष की बातो के रहस्य को जान कर श्रेणिक प्रसन्न तो हो गया, परन्तु अब उसे नरक-गमन का भय सताने लगा। उसने प्रभु-चरणो मे प्रार्थना की-"भगवन् । मुझे नरक से मुक्ति का उपाय वताए ।" भगवान् ने कहा-'श्रेणिक तुमने नरक-भोग के अनन्तर भविष्य मे तीर्थङ्कर पद प्राप्त करना है, अत घबराओ नही, परन्तु ११० [ केवल-ज्ञान-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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