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ही रुके रहे। राजा श्रेणिक प्रभु के वचनो से इतना प्रभावित हुआ कि उसने राज्य मे यह घोषणा करवा दी कि - ___"भगवान महावीर से जो भी व्यक्ति दीक्षा लेना चाहे वह ले सकता है । दीक्षित होनेवालो के कुटुम्ब के भरण-पोपण का दायित्व और दीक्षा समारोह की व्यवस्था राज्य की ओर से किये जाएगे।"
महाराज श्रेणिक के तेईस पुत्रो' और तेरह महारानियो' ने भी भगवान् महावीर से दीक्षा लेकर साधु-जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ कर दिया। एक विचित्र घटना
एक दिन भगवान की धर्म-सभा में राजा 'श्रेणिक' उसका पुत्र 'अभय कुमार' और काल शौकरिक नामक कसाई भी आए हुए थे। तभी वहां फटे-पुराने वस्त्र पहने एक रोगाक्रान्त बूढा आया। उसने भगवान की ओर पीठ करके सर्व-प्रथय राजा श्रेणिक से कहा-"सम्राट चिरकाल तक जीते रहो।' भगवान की ओर मुख करके उसने कहा'तुम शीघ्र मर क्यो नही जाते ।' फिर अभय कुमार से बोला'तुम चाहे जीग्रो, चाहे मरो।' और फिर कालशौकरिक नामक कसाई के अभिमुख होकर बोला-'तुम न तो मरो और न जीयो।'
सब लोग उसकी इस धृष्टता और पहेली जैसे वचनो से स्तव्ध रह गए और वह बूढा सबके देखते ही देखते आखो से अोझल हो गया।
१ श्रेणिक के तेईस पुत्र-जालि कुमार, मयालि कुमार, उवयालि कुमार,
पुरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदन्त, लष्टदन्त, वेहल्ल, बेहास, अभय कुमार, दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन, पूर्णमेन । 'लष्टदन्त' नाम के सम्भवत दो पुत्र थे, अत अनुत्तरोपपातिक सूत्र मे प्रथम वर्ग के दश नामो मे तथा द्वितीय वर्ग के १३ नामो मे लप्टदन्त नाम दो वार पाया है। २ श्रेणिक की तेरह महारानिया-नन्दा, नन्दमती, नन्दोत्तरा, नन्द सेणिया,
महया, सुमरुता, महामरुता, मरुदेवा, भद्रा, मुभद्रा, सुजाता, सुमना और भूतदत्ता ।
पञ्च-कल्याणक]
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