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अव प्रभु महावीर अनेक कठिन मार्गों को पार करते हुए । भटिण्डा के मार्ग से "मोका नगरी"५ पुन वाणिज्य ग्राम आ ग यही पर उन्होने चातुर्मास व्यतीत किया। तीर्थकर जीवन का अठाहरवा वर्ष
वाणिज्य ग्राम के चातुर्मास की पूर्णता पर प्रभु महावीर वान के 'कोष्ठक चैत्य' नामक उद्यान मे ठहरे। यहा के राजा हि ने आपका अभूतपूर्व स्वागत किया । यही पर चुल्लनीपिता और पत्नी श्यामा ने तथा सुरादेव और उसकी धर्मपत्नी धन्या ने श्राव स्वीकार किया। चुल्लनीपिता और सुरादेव अपने युग के करो सेठो मे बहुत प्रसिद्ध थे। ___ श्रमण भगवान महावीर ने यहा से पुन: राजगृह की ओर किया और मार्ग मे 'पालभिया' नामक नगर के शखवन उद्यान में ठहरे। . __ पालभिया मे पोग्गल नामक एक वैदिक धर्मानुयायी तपस्वी था। यद्यपि उसने तपस्या द्वारा ऐसा ज्ञान प्राप्त कर लिया था से वह धरती पर बैठे हुए ही ब्रह्मलोक तक को देख लेता था, पर ज्ञान मे वह पूर्णता प्राप्त न कर सका था, साथ ही देवलोको के वि। उसका ज्ञान कुछ भ्रान्तियो से भी युक्त था। वह भी भगवान मह से देवलोको की व्यवस्था, पृथ्वी से दूरी आदि का यथार्थ ज्ञान कर प्रभु का ही शिष्य बन गया और भगवती सूत्र के अनुसार अन्त मे निर्वाण-पद पाया।
पालभिया के धनकुबेर चुल्लशतक ने अपनी पत्नी बहुला के प्रभु से श्रावक-धर्म की दीक्षा ग्रहण की। यहां से वे पुन: राजगृ गुणशील उद्यान मे पधारे और अर्जुन माली आदि ने यही पर दीक्षा ग्रहण की। इस वर्ष के चातुर्मास से भी उन्होने रा को ही पावन किया। उन्नीसवें चातुर्मास के मार्ग में :
चातुर्मास की पूर्णता पर प्रभु-महावीर धर्म-प्रचारार्थ राजगृ
१ मार्ग की 'मोका' नगरी सम्भवत आधुनिक 'मोगा' नगरी हो ।