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चरणो के स्पर्श से अपने को कृतार्थ किया। राजगृह का पुन भाग्य जागा, वहा का गुणशील चैत्य पुन: प्रभु के धर्म-प्रवचनों से गूंज उठा । यही पर भगवान ने गौतम को 'काल-परिमाण के तत्त्व समझाए । यही पर शालिभद्र और धन्यकुमार के पुण्य जागे और उन्होने भगवान के चरणो मे पहुंच कर विरक्त जीवन व्यतीत करते हुए आत्मोद्धार किया । वर्षावास का सौभाग्य भी राजगृह को ही प्राप्त हुआ ।
सत्रहवां चातुर्मास और उदयन की दीक्षा
राजगृह से भगवान साधु-सघ के साथ चम्पा ग्राए और पूर्णभद्र चैत्य नामक उद्यान में ठहरे। यहां के राजा दत्त के पुत्र महच्चन्द्रकुमार ने प्रभु चरणो में दीक्षा ग्रङ्गीकार की ।
सर्वज्ञ प्रभु ने जाना कि सिन्धु-सौवीर का धर्म-निष्ठ राजा 'उदयन " उनके दर्शनो की अभिलापा कर रहा है, अतः वे लगभग एक हजार मील की यात्रा करके सौवीर की राजधानी 'वीतभयपत्तन' पहुचे और 'मृग - वन उद्यान' मे ठहरे । राजा उदयन प्रभु के दर्शन करके कृत-कृत्य हो गया । उसने प्रभु की मगलमयी वाणी सुन कर दीक्षा ग्रगीकार की और श्रमण-धर्म का पालन करते हुए आत्मोद्धार किया ।
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१. प्रतिष्ठान पुर के सेठ धनसार के पुत्र धन्यकुमार ने जिसके पास राजाश्रो से भी अधिक समृद्धि थी, परन्तु एक सामान्य सी घटना ने इसे ससार से उदासीन कर दिया । वह अपनी ८ पत्नियो को छोड कर अपने साले शालिभद्र के साथ दीक्षित हो गया था। वह धन्यकुमार ही 'धन्ना' के नाम से प्रसिद्ध है ।
२ बिहार में भागलपुर से ३ मील की दूरी पर अवस्थित वर्तमान 'चम्पा नाला' ।' पहले यहाँ का राजा 'दत्त' था परन्तु वाद मे अजात शत्रु (कोणिक) ने यहाँ पर अधिकार कर लिया था ।
३ स्मरण रहे कि यह वत्स देश के राजा 'उदयन से भिन्न है |
४ ऐतिहासिको का अनुमान है कि पाकिस्तान के अन्तर्गत सरगोधा जिला
का जेहलम नदी के तट पर अवस्थित 'भेहरा' नामक कस्वा ही 'वीतभयपत्तन है । भेहरा 'पत्तन' के रूप मे श्रव भी प्रसिद्ध है ।
पञ्च-कल्याणक ]
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