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किए और भगवान महावीर ने उसके प्रत्येक प्रश्न का प्रात्म-परितोपकारी उत्तर दिया ! उसका प्रश्न था---'भगवन् ! जीव भारीपन को कैसे प्राप्त होते हैं ? भगवान ने उसे बताया कि हिंसा, असत्य, चौर्य आदि अठारह पापो के सस्कार जीव को भारी बना कर अधोगति प्रदान करते हैं।
उसने पूछा-'जीव का जागना अच्छा है या सोना ? महावीर कहने लगे-'जयन्ती पुण्यशील का जागना और पाप-प्रवृत्त का सोना अच्छा होता है।
जयन्ती ने पुनः प्रश्न किया-'जीव का सबल होना अच्छा होता है या निर्वल होना ?' प्रभु का उत्तर था-'जयन्तो पुण्यशील की सवलता और पाप-प्रवृत्त को निर्बलता अच्छी होती है।'
इसी प्रकार के अनेको जटिल प्रश्नों के समाधान पाकर जयन्ती का हृदय श्रमणत्व के लिये लालायित हो उठा और उसने भी प्रभु से प्रव्रज्या ग्रहण कर महासतो चन्दना के श्रमणो-सघ मे प्रदेश किया' ।।
यहा से प्रभु अनेक ग्रामो एव नगरा को पावन करते हुए श्रावस्ती के कोष्ठक चैत्य में पहुचे। सुमनोभद्र और सुप्रतिष्ठ आदि श्रावको ने यही पर प्रवज्या ग्रहण कर प्रात्मोद्धार के पावन मार्ग पर आध्यात्मिक प्रगति प्रारम्भ की।
यहां से वे पुन. विदेह-राज्य में प्रविष्ट हुए और वाणिज्य ग्राम मे चातुर्माम व्यतीत किया। यही पर गाथापति आनन्द और उनको पत्नी शिवानन्दा ने बारहवतो श्रावक धर्म स्वीकार कर अपने उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया। तीर्थकर जीवन का सोलहवां वर्ष
अब प्रभु-चरण मगध की ओर वढे, अनेक नगरो ने उनके पावन
१ भगवती सून शतक १२ २ यह वैशाली के निकट गण्डकी नदी के दक्षिणी तट पर अवस्थित एक
विशाल नगर था। मुजफ्फरपुर जिले का 'वजिया' ग्राम वाणिज्य ग्राम
के ध्वसावशेपो के रूप मे आज भी विद्यमान है। - १०६]
[ केवल-ज्ञान-कल्यणाक