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उद्यान मे धर्मोपदेश देने प्रारम्भ किये । यह स्थान उनकी जन्मभूमि 'क्षत्रिय-कुण्डपुर' ग्राम के अत्यन्त निकट था अत: उनकी धर्म-देशना के श्रवण के लिये क्षत्रिय कुण्डपुर के निवासी भी ब्राह्मण कुण्डपुर मे आने लगे।
यहा पर उनसे धर्म-लाभ प्राप्त कर ब्राह्मण ऋषभदत्त और देवी देवानन्दा ने जो उनके माता-पिता थे प्रवजित जीवन स्वीकार किया। भगवान महावीर की सुपुत्री प्रियदर्शना ने एक हजार स्त्रियो के साथ श्री चन्दना जी से दीक्षा ग्रहण कर साध्वी-सघ मे प्रवेश किया और उसके पति जमाली ने भी पाच सौ राजकुमारो के साथ दीक्षा ग्रहण कर प्रभु-चरणो मे रहते हुए धर्म-साधना प्रारम्भ कर दी।
लगभग एक वर्ष प्रभु ने विदेह मे ही विचरण करते और उन्होने अपने श्रमण-जीवन का चौदहवा चातुर्मास वैशाली मे व्यतीत किया । तीर्थकर जीवन का पन्द्रहवां वर्ष
__ वैशाली के चातुर्मास की समाप्ति पर भगवान महावीर वत्स देश की राजधानी कौशाम्बी मे पधारे। कौशाम्बी नरेश शतानीक की मृत्यु के कारण उनकी रानी मृगावती ही राज्यकार्य सम्भाल रही थी और अपने पुत्र उदयन को राज्यकार्य की शिक्षा दे रही थी।
भगवान महावीर कौशाम्बी के चन्द्रावतरण नामक उद्यान मे ठहरे और उनके धर्म-प्रवचन आरम्भ हो गए । महाराज शतानीक की वहन (उदयन की वूया) जयन्ती नामक परम विदुषी श्राविका जयन्ती भी प्रभु के धर्मोपदेश सुनने के लिये आई थी। प्रवचन-सभा की समाप्ति पर उसने भगवान महावीर से बडे जटिल दार्शनिक प्रश्न
१. पढिये च्यवन-कल्याणक के पृष्ठ ९ से ११ तक इस पुण्यशील दम्पति का
परिचय और देवानन्दा के गर्भ-हरण की घटना । २ भगवती सूत्र शतक नौवा । ३ इलाहावाद से दक्षिण-पश्चिम का यमुना तटीय प्रदेश 'वत्स' कहलाता था।
इलाहावाद से ३१ मील की दूरी पर 'कोसमइना' और कोसमइखराज नामक ग्राम कौशाम्बी के ध्वसावशेपो पर ही वसे हुए हैं।
पञ्चकल्याणक ]
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