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________________ त्याग वैराग्य तथा भक्ति मार्ग की ओर अधिक आकर्षित होता है। यही कारण है कि भगवान के संघ मे साध्विया श्रमणो की अपेक्षा लगभग ढाई गुणा अधिक थी। साध्वी सघ का नेतृत्व करने वाली महासती चन्दना स्वय पुरुप के भयकर अत्याचारी की शिकार हो चुकी थी। भगवान महावीर का संघ उन के लिये कल्पवृक्ष सिद्ध हुआ। दासी के हाथ से दान लेने का घोर अभिग्रह भी उन्होने नारी की मुक्ति के लिये ही किया था। दर्शन के क्षेत्र में एक नया प्रयोग : उन्होने कहा-"किसी का भी जीवन व जीवन के सुख का अपहरण करना हिंसा है। केवल चेतन और शरीर का वियोगीकरण ही हिंसा नही बल्कि स्वार्थवश मन, वचन और काया के किसी भी असत् सकल्प, वाणी तथा कर्म से किसी भी प्राणी को दुख व पीड़ा पहुंचाना हिंसा है। जीवन और जगत मे विद्वोष और कलह के प्रसग भी आते रहते हैं, किन्तु वे जीवन की अपवादिक स्थितिया हैं। वे जीवन के आदर्श व सिद्धान्त नही कहे जा सकते, क्योकि कलह और संघर्ष का कितना भी उग्र रूप क्यो न हो आखिर वह प्रेम और मैत्री द्वारा ही शान्त होता है। अशान्त रहने की स्थिति मे वह ज्वाला की तरह भडकता है। सब को अपना कर्म-भोग करवा कर अन्त मे ठण्डा हो जाता है, और फिर नये सिरे से प्रेम, मैत्री तथा सहयोग का युग शुरू होता है। इस प्रकार अन्ततोगत्वा अहिंसा ही परम धर्म सिद्ध होता है । यह कोई कृत्रिम धर्म नहीं है। यह स्वाभाविक है। त्रैकालिक तथा सार्वभौम है। जीवन और जगत के समस्त सद्गुण अहिंसा रूपी कल्पवृक्ष की शाखा प्रशाखा हैं। ___इस प्रकार भगवान महावीर ने विश्व मे 'एक आत्मा' के सिद्धान्त की प्रतिष्ठा की। इस सिद्धान्त ने श्रात्मीय भाव को विराट रूप प्रदान किया। प्राणो-मात्र के साथ आत्मीयता के मधुर सम्बन्ध स्थापित होते ही अपहरण, आक्रमण, उत्पीडन तथा शोषण ये सव सदा के लिये समाप्त हो गए। भगवान महावीर ने अहिसा के गम्भीर रहस्य को मानव हृदय मे प्रतिष्ठित करने का सफल प्रयास किया। भगवान महावीर के अर्घलक्ष साधक अहिंसा के प्रचार मे सलग्न हो गये। कुछ ही वर्षों मे भारत की काया पलट हो गई। १०२] [ केवल-ज्ञान-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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