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________________ को निष्कासित कर दिया । यह दार्शनिक जगत में उन्होने यह एक बहुत वडा विस्फोट ईश्वर के नाम पर होने वाले अमानुषिक अत्याचारी का सहार करने के लिये किया था। ब्राह्मण अपना उद्भव ब्रह्मा के मुख से मानते थे। क्षत्रिय को मुजा मे उत्पन्न हुआ माना जाता था। वैश्यों को ब्रह्मा के उदर का स्थान मिला और पंगे से शूद्रो की उत्पत्ति हुई ऐसा समझा जाता था। इसकी छाया नो अाज नक भी लोक-मानस में कही कही देखी जाती है। भगवान ने कहा "यह कथन केवल प्रतीकात्मक है । मुख जान का स्थान है, भुजा गक्ति का, उदर-ग्रन्न का तथा पर सारे गरीर का प्राधार होने से उस की मेवा का प्रतीक है। इसका मीधा तात्पर्य यह है कि ममाज को ज्ञान, गक्ति अन्न तथा नेवा-जीवन के इन चारो तत्त्वो की अपेक्षा है। प्रत्येक वर्ग में इन बारी गुणो का समुचित विकास होना चाहिये। भगवान महावीर ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति मे अनन्त शक्तिया हैं । वह जिन दिगा मे अभ्यास करता है, उसमे वह प्रवीण हो जाता है। जान ब्राह्मण के अतिरिक्त क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र को भी हो सकता है। गौर्य ब्राह्मण, वैश्य और चूद्र मे भी जाग सकता है । वाणिज्य मे नैपुण्य बाह्मण क्षविय और शूद्र में भी पा सकता है और मेवा के गुण का प्राविर्भाव अन्य तीनो वर्गों में भी हो सकता है इसका सम्बन्ध जन्म और जाति से नहीं। इस का सम्बन्ध मनुष्य की साधना और कम से है। साधना मे सस्कार-परिवनित हो सकते है। अतएव उन्हों ने कहा फम्मुणा वभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तियो। कम्मृणा वइस्सो होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। अर्थात् ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र ये सब कर्म से ही होते हैं । जाति और जन्म से नही । ___ भगवान महावीर ने जातिवाद के विरोध में जोरदार प्रचार किया। दवे हुए हृदय उभर पाए। उन्हे महावीर की वाणी से उत्साह एव बल मिला। महावीर का विराट् सघ जातिवाद के विरोध मे खड़ा हो गया । चारो तरफ साम्यवाद का वातावरण तैयार होने लगा। १.० [ केवल-ज्ञान-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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