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________________ में कहा है जहा पुण्णस्स कत्यइ तहा तुच्छस्स कत्थई । जहा तुच्छस्स कत्थइ तहा पुण्णस्स कत्थई ॥ अर्थात् जो उपदेश वे एक राजा या रानी को देते है वही शिक्षा वे एक दास और दामी को भी देते है, क्योंकि धर्म प्रवृत्ति का अधिकार सबको होता है । जो उद्बो वचन वे एक भद्रपुरुष को सुनाते है वही ज्ञान सूक्त अभद्र के प्रति भी कहते हैं ताकि वह अभद्र से भद्र हो जाए । तीर्थङ्कर प्रेम करुणा और वात्सल्य की भावना से प्रेरित होकर अत्यन्त मिष्ट, शान्त प्रिय, संयमित गम्भीर, परिमित निर्भीक, सुस्पष्ट, मन्तुलित, देश - कालानुसार, निष्पक्ष, दुरितहारी तथा सत्य एव यथार्थ वचन ही बोलते है | समवसरण : वे जिस धर्म-सभा मे प्रवचन देते है उसे समवसरण कहा जाता है | जहां श्रोता लोग वैर भाव को छोड़ कर समभाव से धर्मोपदेश सुनते हैं और जिस स्थान से धर्म का व्याख्यान किया जाता है, उसे समवसरण कहा जाता है । यह समवसरण देव-निर्मित होता है । यह एक योजन लम्बा चौड़ा रहता है, क्योकि तीर्थंकर की वाणी एक योजन तक सुनाई देती है । उनकी वाणी की यह विशेषता है कि उसे प्रत्येक प्राणी अपनी-अपनी भाषा मे समझ लेता है । तीर्थङ्कर देव एक ऊचे सिंहासन पर ग्रशोक वृक्ष के नीचे बैठकर सारे जगत के त्रिताप रूप शोक को दूर करने के लिये अपनी वाणी का प्रसार करते है । भगवान महावीर की प्रथम देशना : - भगवान महावीर ने वैशाख शुक्ला दशमी के दिन अपनी प्रथम धर्म देशना दी, किन्तु भगवान महावीर की यह देशना निष्फल चली गई। कहा जाता है कि भगवान महावीर की इस सभा मे कोई मानव नही था । परन्तु यह वात कुछ अटपटी सी मालूम पड़ती है । जव सनातन जगत् मे भगवान कृष्ण की मुरली के माधुर्य एव आकर्षण के सम्बन्ध ८६ ] [ केवल-ज्ञान-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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