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तप, दो त्रैमासिक तप, दो सार्थ हमासिक तप, छ मामिक तप, दो सार्धमासिक तप, बारह मामिक तप, बहत्तर पाक्षिक तप, दो दिन की एक भद्रप्रतिमा, एक महाभद्रप्रतिमा चार दिन की, एक सर्वतोभद्रप्रतिमा दस दिन की, दो सौ उनतीस वेले, वारह उपवास इम तपस्याकाल के ग्यारह वर्ष छ मास पच्चीस दिन होते है । तपस्या के पारणे के ३४६ दिन होते है। ये सब मिला कर बारह वर्ष छ मास चौदह दिन बनते हैं। इन दिनो मे दीक्षावाला दिन सकलित करने पर इनको कुल संख्या १२ वर्ष ६ मास १५ दिन हो जाती है।
भगवान महावीर चातुर्मास काल को छोड कर शेप पाठ मास विहरण किया करते थे। गाव मे एक रात्रि और नगर मे पाच रात्रि से अधिक नहीं रहते थे । यत्र, तत्र, सर्वत्र इनके ध्यान दीपक सदा जगमगाते रहते थे, उनको ज्योति को भगवान महावीर ने कही बुझने नहीं दिया । भगवान की २१ उपमाएं
विश्व-शान्ति, अहिंसा, क्षमा, तपस्या और तितिक्षा के अमर सन्देशवाहक भगवान महावीर विश्व के एक कान्तिकारी, ऐतिहासिक अध्यात्म-महापुरुप थे। इन के महामहिम, तेजस्वी व्यक्तित्व को यदि उपमा की भापा मे अभिव्यक्त करने लगे तो हजारो उपमाए प्रस्तुत की जासकती हैं, परन्तु शास्त्रकारो ने उनके व्यक्तित्व की झाकी दिखलाने के लिए निम्नोक्त २१ उपमानो से उन्हे उपमित किया है___महावीर कास्य-पात्र के समान निर्लेप, शखकी तरह निरखन, जीव की तरह अप्रतिहतगति, आकाशकी तरह परावलम्बन से रहित, वायु की भाति अप्रतिवद्ध, शरद् कालीन जल की तरह निर्मल, कमल के समान निलिप्त, कछुए के समान जिनेन्द्रिय, गैण्डे के समान दृढ, पक्षी के समान अपर दिन की अपेक्षा से रहित, भारण्ड पक्षी के समान अप्रमत्त, गन्धहस्ती के समान वल-भण्डार, वृषभतुल्य पराक्रमी, सिह के. समान अपराजेय, सुमेरु के समान स्थिर, सागर-सम-गम्भीर, चन्द्रसदृश सौम्य, सूर्य के समान तेजस्वी, स्वर्ण के समान भास्वर, पृथ्वी के समान सहिष्णु और अग्नि के समान देदीप्यमान थे । भगवान् महावीर के उपर्युक्त गुण उनकी गौरव-गाथा को स्पष्ट कर रहे है। . ८०
[ दीक्षा-कल्याणक