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कानों में कोलियां ठोकना
चम्पा नगरी से विहार करते हुए, भगवान महावीर 'छम्माणि' गाव मे पधारे । गाव के बाहर प्रभु ध्यान लगा कर खडे थे। सायकाल एक ग्वाला आया। वह अपने पशु वहा पर छोड कर अपने गाव चला गया। जब वापिस आया तो वहा पशु न देखकर प्रभु मे पशुप्रो के सम्बन्ध मे पूछने लगा। ध्यानस्थ होने के कारण प्रभु मौन रहे, प्रभु को मौन देखकर उसे क्रोध आ गया। वोला-"पहले मैं तुम्हारे कान खोलता हूं।" इतना कहकर उस अज्ञानी ने भगवान महावीर के कानो मे कीलिया ठोक दी। इससे वेदना का होना स्वाभाविक ही था, परन्तु प्रभु ने कर्मभोग समझ कर इसे भी समता से सहन कर लिया।
इसी दशा मे प्रभ वहां से चने और मध्यपावा नामक नगरी मे पधारे, वहा आहारार्थ एक वैश्य के घर गए, जिस समय वहा पहुचे उस समय वैश्य अपने किसी मित्र से वार्तालाप कर रहा था वद्यराज ने प्रभु को निहारते ही कहा- इनके चेहरे मे तो कोई व्याधि है । उसने अपने मित्र से कहा कि सन्त जी को रोको, इनको मैं अभी देखता हू। परन्तु प्रभु तो इतने मे चले गए और वाहर उद्यान मे जाकर ध्यान में अवस्थित हो गए । वैद्य जी प्रभु की व्याधि दूर करना चाहते थे, फलत. वे अपने मित्र को लेकर उद्यान मे पहुचे, इन्हे प्रभु के चेहरे को ध्यान से देखा तो देखने पर पता चला कि इनके कानो मे कीलिया ठुकी हई हैं । उन्होने उसी समय कीलियां निकाली। इस क्रिया से भगवान महावीर को बहुत वेदना हुई, वैद्य ने धावो पर औषधिया लगाई । भगवान की दशा देखकर वैद्य बोले- लोग कितने दुष्ट हैं जो ऐसे सन्तो को भी परेशान करने से नहीं चूकते, परन्तु ये सन्त भी धन्य है जो इतनी असह्य वेदना होने पर भी विल्कुल शान्त दिखाई दे रहे हैं। उपसर्ग और सहिष्णुता
भगवान महावीर के जीवन-शास्त्र का परिशीलन करने से पता
१ यह गाव मगध देश में था, बौद्ध ग्रन्थो मे इसका नाम खाउमत प्रसिद्ध है।
-वीर विहार मोमांसा
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[ दीक्षा-कल्याणक