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________________ इतना कहते ही उसकी आखे डवडवा पाई। देख कर करुणासागर प्रभु वापिस आगए। वापिस आने को देर थी कि पाखो मे पासू अ.ने पर भी राजकुमारी के चेहरे पर मुस्कराहट नाचने लगी। इस तरह अभिग्रह की शर्त पूरी होने पर प्रभु ने चन्दनवाला के हाथो से वाकले ग्रहण करके पाच महीने २५ दिनो की लम्बी तपस्या का पारणा किया। पारणा करने के साथ ही देवताओ ने पाच दिव्यो की वर्षा की । दान के प्रभाव से हथकडिया हाथो के और वेडिया पावो के ग्राभूपणो के रूप में परिवतित हो गई । यत्र, तत्र, सर्वत्र होनेवाले जय-जयकारो से आकाश गूज उठा। राजकुमारी चन्दनवाला वही महासती चन्दनवाला है जो कभी राजसी वैभव की सुखद छाया मे जन्मी, परिवर्धित और सम्बंधित हुई, एक दिन एक सारथी द्वारा बाजार मे नीलाम करके एक वेश्या के हाथो वेची गई। शील देवता के प्रताप से जो वेश्या के कुचक्र से निकली और धन्ना सेठ ने जिसे खरीदा । कही मेरी सीत न बन जाए इस विचार से सेठानी ने जिमके लम्वे-लम्बे केगो को काट कर तथा हाथो मे हथकडिया और पावो मे वेडिया डाल कर भूमिगृह मे वन्द कर दिया। तीन दिनो के पश्चात् सदाचारी पिता उस सेठ द्वारा भूमिगृह मे वाहिर निकाली गई, खाने को जिमको छाज मे उडद के वाकुले दिए गए और वे ही वाकुले जो पतित-पावन भगवान महावीर के हस्तपात्र मे जाकर वरदान वन गए । प्रभु-कृपा से जिसके सदा के लिये सव सकट समाप्त हो गए। करुणा-वरुणामय भगवान महावीर को केवल जान होने पर चन्दनवाला प्रभु की प्रथम शिष्या बनी तथा जिसने ३६ हजार साध्वियो पर प्राध्यात्मिक नेतृत्व करके सदा के लिये अपने जीवन को अमर बना लिया। वाहरवां चातुर्मास कौशाम्बी नगरी मे अपने अभिग्रह का पारणा करने के बाद भगवान महावीर ने वहा से विहार कर दिया। मुमगला आदि नगरियो को पावन बनाते हुए प्रभु चम्पा नगरी मे पधारे और वही पर वाहरवां चातुर्मास व्यतीत किया। पञ्च-कल्याणक ] [७७
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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