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________________ ( ६ ६ ) उसे यह पता नही कि उक्त जड रत्नो का क्या मूल्य है ? उनका क्या ऐश्वर्य है ? जीवन की क्षणिक आवश्यकताओ की पूर्ति के अतिरिक्त उनसे क्या होना जाना है ? वस्तुत यदि गहराई से देखा जाय तो इस पृथ्वी पर एक लोक चितक की भाषा मे तीन ही रत्न है - जल, अन्न और सुभापित वाणी । पृथिव्या त्रीणि रत्नानि जलमन्न सुभाषितम् । मूढे पाषाणखण्डेषु रत्न सज्ञा विधीयते । महाकवि के शब्दो मे और जरा गहरा उतरें तो जल और अन्न केवल भौतिक तृप्ति के लिए, और वह भी क्षणिक तृप्ति के लिए ही है, किन्तु जीवन की सही समस्याओ का समाधान तो एकमात्र सुभापित मे ही मिलता है । एक जन्म ही नही, किन्तु जन्म-जन्मान्तरो तक की समस्या का समाधान सुभापित वाणी मे ही मिल पाता है । जैन आगम साहित्य एक विशाल ज्ञान सागर हैं, सुवचनो का एक अक्षय कोप है | आगमो मे अनेक प्रकार की सैद्धान्तिक चर्चाएँ उपलब्ध होती हैं, विद्वान मनीपी उन पर काफी लम्बी-चौडी चर्चा - विर्चाएँ भी करते हैं, किन्तु कभी-कभी यह चर्चाएँ इतनी नीरस हो जाती हैं कि मावुक श्रोता का अन्तरमानस ऊबने लग जाता है, किन्तु उन नीरस सैद्धान्तिक चर्चाओ के बीच आगम साहित्य मे हजारो हजार सुमापित रत्न कणिकाएँ भी विखरी हुई उपलब्ध होती हैं । एक - एक वचन इतना सुन्दर एव गम्भीर होता है, इतना प्रेरणाप्रद एव प्रकाशमय होता है कि साधक के सम्पूर्ण जीवन का वह संबल बन जाता है । साधक के दुख मे, सुख मे, यश मे, अपयश मे, हानि मे, लाभ मे, जीवन मे और मरण मे अर्थात् जीवन के विभिन्न द्वन्द्वो मे यदि कोई सहारा उसे मिल सकता है, और जीवन पथ का सही रूप परिलक्षित हो सकता है तो इन्हीं सुभापित वचनो मे देखिए एक - एक वचन मे कितना गहरा सकेत छिपा है । कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं । कामनाओ को दूर करो, दुख दूर हो जायेंगे । एगे चरेज्ज धम्मं । भले ही कोई साथ चले या नही, धर्म पथ पर अकेले ही चलते रहो । छंद निरोहेण उवेइ मोक्खं । इच्छा को निरोध करना ही वास्तव मे मोक्ष है ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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