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________________ -ओर म० वुद्ध ] [८१ आवेशमें वाद करता है । इसको देखते हुये, किसीको भी वाद नहीं करना चाहिये; क्योकि कुशल पुरुष कहते हैं कि इसके द्वारा शुद्धि नहीं होती ।" इस प्रकार मुख्यत. उस समयकी परिस्थितिको लक्ष्य करके उन्होने सैद्धांतिक वादविवादको अनावश्यक बतलाया, परन्तु उस समयके शास्त्रीय वातावरणको वह एकदम पलट न सके । आखिर स्वय उनको भी सैद्धां तक बातों का प्रतिगदन गोगरूपमें करना ही पडा, यह हम अगाड़ी देखेंगे, किन्तु यह स्पष्ट है कि म० बुद्धका उद्देश्य सामयिक परिस्थितिको सुधार कर लोगोको नाहिरा शातिमय जीवन व्यतीत करनेका मार्ग सुझाना था। उनका सासारिक जीवन सुविधामय साधु जीवन हो, यही उनको इष्ट था। सांसारिक बधनोंमे पडे हुये लोगोंको गृहस्थीनेसे निकाल कर इस मार्गपर लगाना ही उनका ध्येय था। वह येनकेन प्रकारेण मनुप्योके वर्तमान जीवनको सुवित्रापूर्ण सुखमय देवना चाहते थे। उनके सघके भिक्षुभिक्षुणी भी इस ही प्रकार के सुधारक थे । 'थेरगाथा' की भूमिकामे यी कहा गया है कि 'ये बौद्ध भिक्षु सामयिक सुधारके लिये कटिबद्ध थे | वे जनताको. धर्म, प्रेम, सादा जीवन व्यतीत करने, यज सम्बन्धी हिंसासे दूर रहने और जाति पातिके बन्धनोकी उपेक्षा करने के उपदेश देते थे '' तरह म० बुद्धने निम धर्मशीनीक 1. डॉ. कथकी चुद। फको ' ठ ३३ .,"ty (.3nd lhist rulus ' esset lue the soul je orius Ito a dos 1.1111! ! odas, siy, tla. 101! 'if, th: isinin of Shaus in d other silvier, all in lori sofinha dirish.,' - link. Paellunu is hieu luciu XLVII.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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