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- और म० बुद्ध ]
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शिष्योंके लाभके लिये, अनेकोंकी भलाईके लिये, सतारपर दया लाकर, मनुष्यों और देवोंके लाभ और भलाईके लिये जाओ ।" इस समय 'मार' नामक देवताने आकर पुनः म० बुद्धको अपने धर्मप्रचार करनेसे रोका, परन्तु उन्होने उपेक्षा की और अपने भिक्षुओंको स्वयं ही अन्य शिष्य दीक्षित करने- 'उपसम्पदा' देनेका अधिकार देकर चहुंओर भेज दिया ।
अतएव यह स्पष्ट है कि म० बुद्धने तत्कालीन अवस्थाको सुधारनेके भावसे अपने धर्मका नींवारोपण किया था । उन्होंने प्रचलित रीति रिवाजोको लक्ष्य करके विना किसी भेदभावके मनुष्योंको अपने धर्म में दीक्षित करनेका द्वार खोल दिया था। इससे सामाजिक वातावरणमे भी सुधार हुआ था । तथापि उनका पूर्ण लक्ष्य अपने धर्मको स्थापित करनेमें प्रचलित साधु धर्मका सुधार करनेका था । उस समय साधुगण आपसी शास्त्रार्थो और वादों में ही समयको नष्ट कर देते थे। वर्षभर में वे तीन चार महीनोंके सिवाय शेष सर्व दिनों में सर्वथा इधर उधर विचर कर सैातिक वादविवादोंमें ही प्रायः
1. "I am delivered, O Bhikkhus, from all fetters, human and divine You, O Bhikkhus, are also delivered from all fetters, human and divine Go ye now, O Bhikkhus, and wander, for the gain of the many, for the welfare of the many, out of compassion for the world, for the good, for the gain, and for the welfare of gods and men. etc.” (Mahavagge. I, II, I). २. महाव ૧૧૧૧ર મૌર્ ારા૧.