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________________ -७८] [भगवान महावीरकिया था, परन्तु उस भिक्षुकको इस कथनपर संतोष नहीं हुआ। उसने कहा, 'जो आप कहते हैं शायद वही ठीक हो । आखिर वह वनारस पहुचगये । वहां ऋषिपट्टनमें उन्होंने अपने पूर्व परिचयके पांच ऋषियोंको पाया। पहिले पहिल उन्होंने म० बुद्धके कथनपर विश्वास नही किया और उनका उल्लेख सामान्य रीतिसे 'मित्र'के रूपमें किया। इसपर म० बुखने विशेषरीतिसे उनको समझाया और आश्वासन दिया एवं अपनेको 'तथागत' कहनेका आदेश किया । तब उन्होंने म० बुद्धके कथनको स्वीकार किया और उन्हें अपना गुरु माना । इनमें मुख्य कौन्डिन्य कुलपुत्रको सर्व प्रथम म० बुद्धके 'मध्यमार्ग' में श्रद्धान हुआ इसलिये वे ही म० बुद्धके पहिले अनुयायी थे। उपरान्त यहीं 'यश' नामक वणिकपुत्रको भी बुद्धने चमत्कार दिखलाकर अपने मतमें दीक्षितकर भिक्षु बनाया था। इस समय म० बुद्धके अनुयायी सात थे और इनको वे 'अईत्' कहते थे। भगवान महावीरको भी मनुष्येतर दिव्य शक्तिकी प्राप्ति थी; परन्तु उन्होंने न कभी किसीको अपना शिष्य बनानेकी इच्छा की और न इस शक्तिका उपयोग इस ओर किया। इस प्रकार जव म बुद्धके अनुयायी ६१ (अईत) होगये तब उनने भिक्षुओसे कहा कि "हे भिक्षुओं । मैं मानवी देवी सब वन्धनोसे मुक्त हुआ हूं। हे भिक्षुओ | तुम भी मानवी और देवी सब बन्धनोंसे मुक्त हुए हो । अब तुम, हे भिक्षुओ ' अनेकों १. महावरग १९४८ (पृष्ट ९१)२ महावग्ग ११६९. ३ महावग्ग १२६१२. (पृष्ठ ९२) ४. महावग्ग १६२० और 'बुद्धजीवन' (S. B.B.XIX) पृष्ठ १७२. ५. महावग्ग १८ (पृष्ठ १०२)
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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