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-और म० बुद्ध]
[७७ उन पांच ऋषियोंको उपदेश देना उचित समझा जिनके साथ उन्होंने छः वर्ष तक घोर तपश्चरण किया था । उस समय उन पांचोंको ऋषिपट्टन-बनारस में स्थित जानकर म० बुद्ध उस ही ओर प्रस्थान कर गये ।' सम्बोधीके पश्चात म० बुद्धने अपने आप आहार करना नियम विरुद्ध समझा था । इसलिये उनका प्रथम आहार तपुस्स और भल्लिक वणिकोंके यहां मार्गमें हुआ था।
उक्त प्रकार जब म० बुद्ध बनारसको अपने धर्मप्रचारके लिये जा रहे थे, तो मार्गमें उनको एक ' उपाक' नामक आजीवक भिक्षु मिला था। इसके पूछनेपर उन्होंने अपनेको 'सम्बुद्ध' प्रकट
१. महावग्ग १,६,५ पनारसके निकट ऋषिपटनमें उक्त पांचों ऋषियोंका रहना, जो सभवत. जैन मुनि थे, इस बातका द्योतक है कि यह स्थान जैन मुनियों की तपश्चर्याका मुख्य केन्द्र था। इसकी पुष्टि उत्तरपुराण के इस कथनसे होती है कि भगवान पाश्वनाथने बनारसके निकट अवस्थित धन में दीक्षा ग्रहण की थी और यहींपर उनको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी। इस अवस्थागे यह स्थान जैनमुनियोंकी पाली हो तो कोई विस्मय नहीं। मजिझमनकायमें म० बुद्धने एक 'ऋषिगिरि' का उल्लेख क्रिया है और वहा जैन मुनियोका होना बतलाया है। (P. T. S. Vol 1..P P.92-93). यदि ऋषिपटन' और 'ऋषिगिरि' एक ही स्थान है तो हमारे उक्त अनुमानका यह एक और प्रमाण है। साथ ही 'बुद्धजीवन' (S. B. E. XIX. P. 168)में इस स्थान (बनारस) को 'प्राचीन ऋषियोंका निवास स्थान' (Where dwelb the ancient Rishis) बतलाया है, अतएव इसका जैनस्थान होना विस्कुल स्पष्टसा मालूम होता है । २. महावग्ग ११५ (S BE. XIII. P. 82) भगवान महावीर प्रबुद्ध होने उपरांत कवलाहार नहीं करते थे। उनकी सत्तासे वेदनीय कर्मके अभाष हो जानेसे इसकी आवश्यक्ता नहीं रही थी ।