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[ भगवान महावीरसंशय था कि शायद ही जनता उनके 'संदेश' को समझ सके इसलिये वह कुछ समय तक एकान्तमें रहकर शान्तिका उपभोग करने लगे। ' परन्तु अन्ततः वह अपनी इस कमजोरीको दूर करके धर्मप्रचारके लिये उद्यत हुए । वौद्ध कहते हैं कि इस समय स्वयं ब्रह्माने आकर उनको उत्साहित किया था। अतएव अपने धर्मका प्रचार करनेका दृढ़ निश्चय जब उन्होने करलिया, तो उनको इस बातकी फिकर हुई कि किस व्यक्तिको उपदेश देना चाहिये । इसपर उन्होने अपने पूर्वगुरु 'आरादकालार्म'को इस योग्य पाया, किन्तु इसी समय किसी देवताने उनसे कहा कि आरादकालामकी मृत्यु हो चुकी है । इसके साथ ही उन्होने अपनी ज्ञानदृष्टिसे काम लिया तो यही बात प्रमाणित हई। फिरें दूसरे गुरु उद्दकरामपुत्तके विषयमें भी यही घटना उपस्थित हुई । अन्ततः उन्होंने
१. महावग्ग १, ५, १ (S B B. Vol. XIII. P. 84.) २ बुद्धजीवन (S. B. E. XIX) पृष्ठ १४८... ३. “ The Buddha thought-to whom shall I preach the doctrine first He thought of his first tencher-Aldra-Kalama, but a deity- told that-he died seven days ago...then 'Knowledge sprang up jr the-Blessed One's-mind that-AlaraKålàña died seven days ago.' Then he thought of his second Teacher Uddaka Raipatti, but the same fate turn out of him too." महावग्ग १,६,-५ (S. B B Vol. XIII P. 89 ). इस कथनसे भी म० वुदका ज्ञान पूर्णज्ञान प्रगट नहीं होता, प्रत्युत उस भवधिज्ञानकी पुषि होती है जिसका उल्लेख हम पहिले कर चुके है। ४. पूर्व १,६,४.