________________
७४]
[भगवान महावीरउक्त बौद्ध ग्रन्थमें की गई है उस प्रकार म० बुद्धका ज्ञान प्रकट नहीं होता । इसी हेतुसे हम इतना कहनेका साहस कर रहे हैं, वरन् वृथा ही किसीकी मान्यताको अस्वीकार करनेकी धृष्टता नहीं की जाती । तिसपर यह व्याख्या केवल उक्त बौद्ध अन्य पर ही अवलम्बित नहीं है। प्रत्युत म० बुद्धने स्वयं इस बातको स्पष्टतः स्वीकार नहीं किया है। जब उनसे सर्वज्ञताके विषयमें प्रश्न हुआ तो उन्होंने टालनेकी ही कोशिश की थी। एकवार राना पसेनदीने उनसे पूछा कि:
“ अर्हतों (सर्वज्ञों) में कौन सर्व प्रथम है ?"
बुद्धने कहा कि “ तुम गृहस्थ हो, तुम्हें इन्द्रिय सुखमे ही आनन्द आता है। तुम्हारे लिये संभव नहीं है कि तुम इस प्रश्नको समझ सको।"
इसतरह यह प्रत्यक्ष प्रकट है कि बोधिवृक्षके निकट जिस दिव्यज्ञानके दर्शन म० बुद्धको हुये थे वह पूर्णज्ञान अथवा सर्वज्ञता नहीं थी; प्रत्युत उससे कुछ हेय प्रकारका वह ज्ञान था। जैन दृष्टिसे उसे हम अवधिज्ञान (विभंगावधि) कह सक्ते हैं । 'थेरीगाथा' की भूमिकामें बौद्धाचार्य म० बुद्धकी इस ज्ञानप्राप्तिके
१. महापरिनिवानमुत्त (S. B. E Vol. XI.) पृष्ठ १४. २. "He (King Pasenadi ) once asked the Buddha, " who is the foremost among the Arahats ? " The Buddha replied, "You are a householder, you find delight in sensual pleasures. It will not be possible for you to unerstand this question "-Samyutu-Nikaya. Pt. I. P.P.78-79.