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________________ -और म० बुद्ध [७१ म० बुद्धने जब देखा कि इस कठिन तपश्चरण द्वारा भी उनको उद्देश्यकी प्राप्ति नही होती, तो उन्होंने कहाः ___"न इन कठिनाइयोके सहन करनेवाले नागवार मार्गसे मैं उस अनोखे और उत्कृष्ट पूर्ण (आर्योंके) ज्ञानको, जो मनुष्यकी बुद्धि के बहार है, प्राप्त कर पाऊंगा । क्या सम्भव नही है कि उसके प्राप्त करनेका कोई अन्य मार्ग हो ?" । (E. R. E. Vol. II. P. 70.) __इसके साथ ही उन्होंने शरीरका पोषण करना पुनः प्रारम्भ कर दिया, परन्तु इस दशामें भी उनका श्रद्धान आर्योंके उत्कृष्ट एव विशिष्ट ज्ञानमें तनिक भी कम न हुआ । उनको उस उत्कृष्ट ज्ञानके पानेकी लालसा अब भी रही और वह उसको अन्य सुगम उपायों द्वारा प्राप्त करनेके प्रयत्नमें सलग्न होगये; किन्तु इतना दृढ़ श्रद्धान म० बुद्धको जो आत्माके उत्कृष्ट ज्ञानकी शक्तिमें हुआ, सो कुछ कम आश्चर्यपूर्ण नहीं है । अवश्य ही इतना दृढ़ श्रद्धान इस उत्कृष्ट ज्ञानमें उसी अवस्थामें हो सक्ता है जब उसके साक्षात दर्शन उस श्रद्धानीको होगये हों। अतएव इसमें संशय नहीं कि म० बुद्धने अवश्य ही भगवान पार्श्वनाथके तीर्थक किसी केवलज्ञानी ऋषिरानके दर्शन किये होंगे | इसी कारण उनका इतना दृढ़ श्रद्धान था। ___म बुद्ध अपने इस दृढ़ श्रद्धानके अनुरूपमें अन्य सुगम रीतिसे इस उत्कृष्ट आर्यज्ञानको प्राप्त करनेमें संलग्न थे। इतनी कठिन तपश्चर्या जो उन्होंने की थी वह वृथा ही जानेवाली न थी। १ बुद्ध जीवन (S. B.E.XIX) पृष्ट १४७...
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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