________________
७.]
[ भगवान महावीरफिर इसी धुनमें उसे शांति और सुखका अनुभव प्राप्त हो और वह इसी सत्यकी उच्च तान लगावे और कहे:
'निज घटमें परमात्मा, चिन्मूरति मइया । ताहि विलोक सुदृष्टिधर, पंडित परखैय्या'॥
यही प्राचीन सत्य है । भारतके पुरुषोंने इस ही की सर्वथा घोषणा की थी ! धोषणा ही नहीं, प्रत्युत तदप आचरण करके उन्होने यथार्थताके वस्तुस्थितिके-प्रत्यक्ष दर्शन लोगोको करा दिये थे। भगवान महावीर और म० बुद्ध भी उन्ही भारतीय पुरातन पुरुषोंकी गणनामेंसे बाहिर नहीं है; यद्यपि म० बुद्धके विषयमें इतना अवश्य है कि उन्होंने सामयिक परिस्थितिको सुधारनेके लिये प्रगटरूपमें आत्माके अस्तित्वसे इन्कार किया था, परन्तु अन्ततः अस्पष्टरूपमें उनको उसका अस्तित्व और महत्व स्वीकार करना पड़ा था, यह हम अगाडी देखेंगे, अतएव यहापर हमको देखना है कि इन दोनों युगप्रधान पुरुषोने किसरीतिसे इस यथार्थ आर्य सत्यके दर्शन किये थे?
म० बुद्धके विषयमें हम देख आये हैं कि वे परिबाजक आदि साधुओंके मतोका अभ्यास करके, जैन साधुकी ज्ञान-ध्यानमय अवस्थाको प्राप्त हुये थे । उस अवस्थामें उन्होंने छः वर्षका कठिन तपश्चरण धारण किया था। इस तपश्चरणमें उनका शरीर बिल्कुल सूखगया था। वे विलकुल शिथिल हो गये थे परन्तु उनने यह सब तपश्चरण निदान बाधकर प्रबुद्ध होनेकीतीव्र आकान्क्षासे किया था, इसीलिये वह इच्छित फलको न दे सका ! बस,