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- और मं० बुद्ध ]
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द्वारा स्वीकार करनेको बाध्य हुये हैं । सर ओलीवर लॉज महोदय इन विद्वानों में अग्रगण्य हैं । इन्होंने अपने स्वतंत्र प्रयत्नों और 1 आविष्कारों द्वारा यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्यमें अनन्त शक्ति है । स्वयं परमात्माकी प्रतिमूर्ति उसके भीतर मौजूद है । इस शरीर के नाशके साथ, उसका अन्त नहीं होजाता । वह जीवित रहता और परमोच्च जीवनको प्राप्त करता है ।
ये उद्गार यथार्थ सत्य हैं। 'भारतमें इनकी मान्यता और उपासना युग पहिलेसे होती आई है । और आज भी इस पवित्र I भूमिमें इस मान्यता को ही आदर प्राप्त है, किन्तु नूतनं सभ्यताके मदमाते नवयुवकं आज इस प्राचीन सत्यको सहसा गलें उतारने में हिचकते दृष्टि पडते हैं । अतएव आत्मवादके लिये भौतिक संसारके प्रख्यात् विद्वान्के उक्त उद्गार हर्षोत्पादक शुभ चिन्ह हैं । इनमे आंशाकी वह रेखा विद्यमान है जो निकट भविष्यमें संसार को आत्मवादके सुखमार्ग पर चलतें दिखायगी ! उस समय सारा संसार यदि जैनाचार्यके साथ यह घोषणा करते दिखाई दे तो कोई आश्चर्य नहीं किः - 'यः परात्मा स एवाहं योऽहं स परमस्तथा ।
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अहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदिति स्थितिः।। ' भावार्थ- 'जो परमात्मा है वही मैं हूं तथा जो मैं हूं सो ही परमात्मा है । इसलिये। मैं ' ही मेरे द्वारा भक्ति किये जानेके योग्य' हूं और कोई नहीं; ऐसी वस्तुकी स्थिति है ।' वस्तुतः इस यथार्थ वस्तुस्थितिके अनुरूपमें यदि मनुष्य निरालम्ब हो पौगलिक : प्रभावसे मुख मोड़ले तो वह इस सत्यके दर्शन सुगम करले |
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१. देखो जोम्बेक्रॉनिकल' - भाँग १३ संख्या ४८ डी. पृष्ठ ११