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________________ ६८] [ भगवान महावीरमित हुये थे और इस अवस्थामें उन्होने लगातार-बारह वर्षका ज्ञान ध्यानमय तपश्चरण किया था। इस तरह म० बुद्ध और भगवान महावीरके साधुनीवन व्यतीत हुये थे । म० बुद्धने किसी नियमित साधुसप्रदायका व्यवस्थित अभ्यास नही किया था और भगवान महावीरने प्राचीन निर्ग्रन्थ श्रमणोकी क्रियायोंका पालन अपने गृहत्यागके प्रथम दिनसे ही किया था। अतएव इन दोनों युगप्रधान पुरुषोंके साधुनीवन भी बिल्कुल विभिन्न थे। ज्ञानप्राप्ति और धर्मप्रचार। 'मनुष्यमें पूर्णपनेकी संपूर्ण शक्ति विद्यमान है' यह विश्वास ___ आत्मवादके सुरम्य जमानेमें प्रत्येक व्यक्तिको हृदयङ्गम था । किन्तु इस आधुनिक पुद्गलवादके दौरदौरेमे यह विश्वास बहुत कुछ लुप्त होरहा है। लोग इस प्राकृतिक श्रद्धान-आत्मविश्वासकी ओरसे विमुख होरहे है । आत्मवादकी रहस्यमय घटनाओंको उपहासकी दृष्टिसे देखरहे है। मनुष्यकी अपरिमित आत्मशक्तिमें आन प्रायः लोगोंको अविश्वास ही है, किन्तु सत्य कभी ओझल हो नहीं सका । धूलकी कोटिराशि उस पर डाली जाय, परन्तु उसका प्रखर प्रकाश ज्योंका त्यों रहेगा । आत्मवाद एक प्राकृतिक सिद्धान्त है उसका प्रभाव कभी मिट नही सक्ता । परिणामतः आन इस भौतिक सभ्यतामें लालित पालित और शिक्षित दीक्षित हुये विद्वान ही इसके अनादिनिधन सिद्धान्तोंको प्रत्यक्ष प्रमाणों
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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