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-और म० बुद्ध ]
२०-यह सांकाक्षानशन नामक व्रत है।
इन क्रियायोके विशद विवेचनके लिये 'वीर' वर्ष २ अंक २३में 'जैन मुनियों का प्राचीन भेष' शीर्षक लेख देखना चाहिए।
इसके साथ ही ब्राह्मणोंके शास्त्रोमें भी जैन मुनियोका भेष नग्न बतलाया गया है। इन सब प्रमाणोंको देखते हुये यही उचित मालूम होता है कि जैन तीर्थंकरोंने निर्ग्रन्थ मुनिका भेष नग्न ही बतलाया था । और जब उन्होंने इस तरह इसका प्रतिपादन किया था तो वह स्वयं भी नग्न भेषमें अवश्य रहे थे यह प्रत्यक्ष है।
__ अतएव भगवान् महावीरने परम उपादेय दिगम्बरीय दीक्षा धारण करके दाई दिनका उपवास (वेला) किया था। उसके उपरांत जब वह सर्व प्रथम मुनि अवस्थामें आहार निमित्त निकले तो कूलनगरके कूलनृपने उनको पडगाहकर भक्तिपूर्वक आहारदान दिया था। यही बात श्री गुणभद्राचार्यनी निम्न श्लोकों द्वारा प्रकट करते है:
१. ऋग्वेद १०।१७९, वराहमिहिर सहिता १९६१ और ४५१५८ महाभारत ॥२६॥२७, रामायण बाउकाण्ड भूषण टोका १४।२२; विष्णुपुराण ३१८ अध्याय, वेदान्तसुत्र २।२।३३-३६, दशकुमार चरित २. २. महावीर पुराण, ३. राजा और नगरका एक ही नाम होना हमें सदेहमें डाल देता है कि कहीं यहाँ किसी गणराज्यके राजाका उल्लेख न किया गया हो। इसी अनुरूप हमने अपने 'भगवान महावीर' में इन राजाको 'कोल्यिगणराज्य' का एक राजा और उसके गणराज्यकी राजधानी 'देवक लिं' को कुलग्राम वतलाया है। किन्तु प० विहारीलाल जी. सी. टी. का कयन है कि यह नगर भगवान महावीरके कुलका नगर अर्थात कुण्डग्राम होना चाहिये, क्योकि भगवानने भाने जन्मस्थानके निकट ही दीक्षा ग्रहग करके योग धारण किया था। यह भी अनुमान 'कुल प्राम' के अर्थ 'कुलका ग्राम