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________________ ६४] [ भगवान महावीर१५-यह अभिघट उद्गम दोष दीखता है। १६-'वह वहां भोजन स्वीकार नहीं करेगा जहा पासमें कुत्ता खडाहो।' १६-प्रथम पादातर जीव सम्पात या दशक अन्तराय दोप है । श्वे० के यहां भी यह स्वीस्त है । १७-वह वहां भोजन नही लेगा जहां मक्खियोका ढेर लगा हो। १७-यहां 'पाणिजंतुवध' अन्तरायका अभिप्राय है । १८-वह (भोजनमें) मच्छी, मास, मद्य, आसव, सोरवा ग्रहण नहीं करेगा। १८-यह स्पष्ट है, यथाः"खीरदहिसप्पितेल गुडलवणाणं च ज परिचयणं । तित्तकटुकसायंविलमधुररसाणं च जं चयणं ॥१५॥ चत्तारि महावियडी य होति णवणीद मज्जमांसमधू । कंखापसंगदप्पा संजमकारीओ एदाओ ॥ १५६ ॥" . -मूलाचार। १९-वह ' एक घर जानेवाला ' होता है. एक ग्रास भोजन करनेवाला होता है या वह 'दो घर जानेवाला' होता है.. दो ग्रास भोजन करनेवाला है. या वह 'सात घर जानेवाला है-सात ग्रास तक करनेवाला है। वह एक आहार निमित्त दो निमित्त या ऐसे ही साततक जानेका नियमी होता है। १९-यह वृत्तिपरिसख्यान क्रिया है। २०-वह भोजन दिनमे एक वार करता है, अथवा दो दिनमे एकवार अथवा ऐसे ही सात दिनमें एक वार करता है। इस प्रकार वह नियमानुसार नियमित अन्तरालमे-अर्ध मास तकमें-भोजन ग्रहण करता रहता है।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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