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________________ - और म० बुद्ध ] [ ६३ ६ - 'वह ( उस भोजनको भी) नही लेता है ( यदि बता दिया जाय कि वह खासकर उसके लिये बनाया गया है) । ' ६ - इसमें भी कारित अनुमोदना दोष प्रकट है । ७ - ' वह कोई निमंत्रण स्वीकार नहीं करता ७ - यहा भी उक्त दोष है, जैन मुनि निमंत्रण स्वीकार नहीं करते । ८ - ' वह नही लेगा ( भोजन जो उस वर्तनमें से निकाला गया होगा ) जिसमें वह रांधा गया हो ८ - यह ' स्थापित या न्यस्त' दोष है । ९ - ( वह भोजन ) नहीं (लेगा ) आंगनमें से ( कि शायद वह वहां खासकर उसके लिये ही रक्खा हो) ' १०- ( वह भोजन) नहीं (लेगा ) जो लकडियों के दरमियान रक्खा गया हो ।' ין , ९-१०. प्रादुष्कर दोष है । ११ - ( वह भोजन ) नही (लेगा) जो सिलवट्टे के दरमियान रक्खा हो । ११ - यहां 'उन्मिश्र अशन दोष' का भाव है । १२ - जब दो व्यक्ति साथ२ भोजन करते हैं तो वह नही लेगा केवल एक ही देगा । १२ - यह अनीश्वर व्यक्ताव्यक्त अनीशार्थ दोषका रूपान्तर है । १३ - ' वह दूध पिलाती हुई स्त्रीसे भोजन नहीं लेगा.... ।' १४ - ' वह पुरुषके सग रमण करती हुई स्त्री से भोजन नही लेगा।' १३-१४ - यह दायक अशनदोषके भेद हैं । १९ - ' वह • भोजन नहीं लेगा (जो अकालके समय ) एकत्रित किया गया हो ।' ..
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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