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[ भगवान महावीर -
खडे २ करता है, (भले मानसोंकी भांति झुककर या बैठकर
नहीं करता । "
२ - इसमें २४ वें (अस्नान ) २६ वें (अदन्तघर्पण) और २७ वें ( स्थितभोजन) मूलगुणोका उल्लेख है ।
३ - " वह अपने हाथ चाटकर साफ करलेता है ।"
३ - जैन मुनि हाथोकी अञ्जलिमें जो भोजन रक्खा जावेगा उसे वैसा ही खा लेते हैं, ग्रास बनाकर नही खाते। यहांपर बौद्धाचार्य इसी क्रियाको विकृत आक्षेपरूपसे बतला रहे हैं। ४ - ( जब वह अपने आहारके लिये जाता है, यदि सभ्यतापूर्वक नजदीक आनेको या ठहरनेको कहा जाय कि जिससे भोजन उसके पात्र में रख दिया जाय तो) वह तेजी से चला जाता है ।" ४ - यह मूलाचार की ऐषणा समितिकी टीकामे स्पष्ट कर दिया गया है, यथा:
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“भिक्षावेलायां ज्ञात्वा प्रशान्ते धूममुशलादिशब्दे गोचरं प्रविशेन्मुनिः । तत्र गच्छन्नातिद्रुतं, न मन्दं, न विलम्वितं गच्छेत् ॥ १२१ ॥"
- " वह (उस) भोजनको नहीं लेता है । (जो उसके निकट आहा/ रके लिये निकलने के पहिले लाया गया हो ) ।
५ - ऐषणा समिति मुनिको ४६ दोषरहित, मन, वचन, कायकृत, कारित अनुमोदनाके ९ प्रकारके दोषोसे रहित भोजन ग्रहण करना आवश्यक बतलाया है, अतएव लाया हुआ भोजन खास उनके निमित्तसे बना जानकर वे ग्रहण नहीं -करते ।