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-और म० बुद्ध]
[६१ दिगम्बर जैन शास्त्रोंके सर्वथा अनुकूल है । व्रती श्रावकोंको श्वेतवस्त्र धारण करनेका विधान उनमे मिलता है तथा ग्यारहवीं प्रतिमाधारी श्रावक 'एक वस्त्रधारी' कहा गया है । इसके अतिरिक्त बौद्धशास्त्रमें जैन मुनियोंकी कतिपय प्रख्यात् दैनिक क्रियायोका भी इस प्रकार वर्णन मिलता है
"डायोलॉग्स ऑफ बुद्ध" नामक पुस्तक (S. B. B.) के 'कस्सप-सिहनाद-सुत्त' में विविध साधुओंकी क्रियायोका वर्णन दिया हुआ है । उनमें एक प्रकारके साधुओंकी क्रियायें निम्नप्रकार दी हैं और यह जैन साधुओंकी क्रियायोंसे बिलकुल मिल जाती हैं। इसलिये हम दोनोंको यहांपर देते है:वौद्धशात
१-" वह नग्न विचरता है।" जैनशास्त्र
१-यह जैन मुनिके २८ मूलगुणों से एक है और यों है:'वत्थाजिणवक्केण य अहवा पत्ताइणा असंवरणं । णिभूसण णिग्गंथं अचेलकं जगदि पूज्जं ॥३०॥-मूलाचार । २-" वह ढीली आदतोंका है। शारीरिक कर्म और भोजन वह 1. यथा:-सद्वधा प्रथम स्मश्रुमूर्धजानअपनाययेदते ।
सितकौपीन सं व्यानः कर्तर्या वा क्षुरेण वा ॥३०॥ तद्वत् द्वितीयः किन्वार्यसंज्ञो हुँचत्यसौ कचान । कौपीनमात्रयुग्धत्ते यतिवत्प्रतिभासनम् ॥४८॥
-सागारधर्मामृत। "उत्कृष्ट श्रावको भवेत् द्विविधः पवैकधर प्रथम. कोपीनपरिग्रहोऽन्यस्तु।"
-स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा टीका।