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[ भगवान महावीरनग्न अवस्था संसार त्यागका एक चिह्न माना जाता था। मि० वाशिङ्गटन अरविन्ना अपनी "लाइफ ऑफ मुहम्मद" {Appendix) में कहते है कि 'तौफ अर्थात् कावाका परिक्रमा देना मुहम्मदसे पहिलेकी एक प्राचीन क्रिया थी और स्त्री-पुरुष दोनों ही नग्न होकर इस क्रियाको करते थे। मुहम्मदने इस क्रियाको बन्द किया
और इहराम अर्थात यात्रीके वस्त्रकी व्यवस्था की थी। ईसामसीहका विना सिया हा कोट अलंकृत भाषामें नग्नताका द्योतक है। St. John, XIX, 23)."" इस प्रकार यह प्रगट है कि एक समय ससारमें सर्वत्र नग्नता साधुपनेका आवश्यक चित्र समझी जाती थी। भगवान महावीरके समयमें आजीवक आदि भी नग्न रहते थे, यह हम देख चुके है । आज भी हिंदुओंमे नंगे साधु मिलते हैं । उमी तरह जेन निग्रंथ साधु भी प्राचीन दिगम्बर भेपमें विचरते दृष्टि पडते है।
इस परिस्थितिमें यह सहसा जीको नहीं लगता कि उस प्राचीन कालमें जैन निग्रंय मुनि वस्त्रधारी होते हों । जेन शास्त्रोके अतिरिक्त बौद्ध शास्त्रोमे जैन मुनियोंका उल्लेख नग्नरूपमें किया गया है। साथ ही उनमें 'एक वस्त्रधारी' और 'श्वेतवस्त्रधारी' निगन्य साक्को (श्रावकों ) का भी उल्लेख मिलता है। और यह
१. सप्लीमेन्ट इ टी कॉन्फुयेन्स ऑफ ओपोजिस पृष्ठ २७. २. देतो दिव्यावदान पृष्ठ १६५; जातक्माटा (S. B. B Vol. ) पृष्ठ १४.; विशाखापत्यु-धम्म पदत्य कथा ( P. T. S. Vol. I). भाग २ १४ ३८४, रायोलॉग्स ऑफ दी बुद्र भाग ३ पृष्ठ १४; महावग्ग ८,१५,७.१,३८६, चुम्वग८,२८,३,सयुत्तनिकाय २,३,१०,५. १.न्टयन एन्टोरी माग ४३,