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- और म० बुद्ध ]
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बुराई भलाईकी जानकारी ही हमारे मुक्त होनेमें बाधक । मुक्ति लाभ करनेके लिये हमें यह भूल जाना चाहिये कि हम नग्न हैं । जैन निर्ग्रन्थ इस बातको भूल गये हैं, इसीलिए उनको कपडोकी आवइयक्ता नही है" ।" यह परमोत्कृष्ट और उपादेय अवस्था है । दि० और श्वे० शास्त्र ही केवल इस अवस्थाकी प्रशंसा नही करते, प्रत्युत अन्य धर्मोमे भी इसको साधुपनेका एक चिह्न माना गया है। हिंदुओंके यहा भी नग्नावस्थाको कुछ कम गौरव प्राप्त नही हुआ है। शुकाचार्य दिगम्बर ही थे, जिनके राजा परीक्षितकी सभामे आनेपर हजारों ऋपि और स्वयं उनके पिता एवं परपिता उठ खडे हुए थे ।' हिन्दुओके देवता शिव और दत्तात्रय नग्न ही हैं। यूनानवासियोके यहां भी नग्न देवताओकी उपासना होती थी । ईसाईयोकी वायविलमे भी नग्नता साधुताका चिह्न स्वीकार की गई है, यथा:"और उसने अपने वस्त्र उतार डाले और सैमुयलके रामक्ष ऐसी ही घोषणा की और उस सपूर्ण दिवस और रात्रिको वह नग्न रहा । पर उन्होने कहा, क्या आत्मा भी पेगम्बरोमेरो
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है ?" -- ( सेनुवल, १९-२४ )
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उसी समय प्रभृने अमोजके पुत्र ईसाय्यासे कहा, जा और अपने वस्त्र उतार डाल और अपने पैरोसे नृते निकाल डाल और उनने यही किया, नग्न और नंगे पैरो विचरने लगे । - ( ईसाय्या २० - २ ) मुसलमानोके बारेमे भी कहा गया है कि "अरवोके यहा भी
१. दी हार्ट ऑफ जैनीज्म पृष्ठ ३५० २. जेन इतिहास सीरीज़ भाग १. पृष्ठ १३. १३. पूर्वप्रमाण.