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-और म० बुद्ध ]
[५७ साधु उदासीन श्रावक माने गये हैं और उत्कृष्ट श्रावक क्षुल्लक' 'ऐलक' कहलाते हैं । श्वे० के उत्तराध्ययनसूत्र में भी क्षुल्लकको लक्ष्यकर एक व्याख्यान लिखा गया है। अतएव यह शब्द वहां भी उदासीन उत्कृष्ट आवकके लिए व्यवहृत हुआ प्रतीत होता है । ऐसी दशामें यह स्पष्ट है कि श्वे आचार्य भी मुनिके लिये नग्न अवस्था आवश्यक समझते हैं और वही सर्वोत्कृष्ट क्रिया है । तथापि तीर्थकर भगवानका जीवन सर्वोत्कृष्ट होता है । इसलिये उनकेद्वारा सर्वोत्कृष्ट क्रियाका पालन और प्रचार होना परम युक्तियुक्त और आवश्यक है। इसीलिये अन्ततः श्वे० आचार्यको भी भगवान महावीरके विषयमें कहना पडा है कि "उन ( भगवान् )के तीन नाम इस प्रकार ज्ञात हैं अर्थात् उनके माता-पिताने उनका नाम वईमान रखखा था, क्योंकि वे रागद्वेषसे रहित थे, वे 'श्रमण इसलिये कहे जाते थे कि उन्होंने भयानक उपसर्ग और कष्ट सहन किये थे, उत्तम नग्न अवस्थाका अभ्यास किया था, और सासारिक दुःखोंको सहन किया और पूज्यनीय श्रमण महावीर, वे देवों द्वारा कहे गये थे।
१. जैनसूत्र (S. B.E) भाग २ पृष्ठ २४-२७. २. "His three names have thus been recorded by tradition : by his parents he was called Vardhamana, because he is devoid of love and hate ; ( he is called ) Sramana (i. e. Ascetic ), because he sustains dreadful dangers and fears, the noble nakedness, and the miseries of the world; the name Venerable Ascetic Mahavira has been given to him by the gods." ( Jaina Sutras. S. B.E. Pt. I. P. 193).