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[ भगवान महावीर
ङ्करोंने भी इस नग्नवेशको धारण किया था।' ऐसी अवस्थामे स्पष्ट है कि न केवल भगवान महावीर और ऋषभदेवने ही इस नग्नावस्थाको धारण किया था, प्रत्युत प्रत्येक तीर्थकरने अपने मुनि जीवनमें इस परीषहको सहन किया था।
वास्तवमें श्वे० ग्रन्थोमें भी जैन मुनियोंका प्रायः वैसा ही मार्ग निर्दिष्ट किया गया है जैसा दि० शास्त्रोमें बतलाया गया है। यदि उसमें अन्तर है तो वह उपरान्तके टीकाकारोके प्रयत्नोका फल है। उनके इसी आचाराङ्गसूत्रमें सर्वोत्कृष्ट नग्न-अचेलक अवस्थाका निरूपण करके अगाडी क्रमशः तीन वस्त्रधारी, दो वस्त्रधारी और एक वस्त्रधारी या नग्न साधुका रूप और उसका कर्तव्य प्रतिपादित किया गया है । एक वस्त्रधारी और नग्न मुनिको उनने एक ही कोटिमें रखकर प्राकृत अनियमितता प्रकट की है। इनके उपदेशक्रमसे यह स्पष्ट है कि वे वस्त्रको त्याग करना आवश्यक समझते थे और यह है भी ठीक, क्योंकि यदि वस्त्रधारी अवस्थासे मुक्ति लाभ होसक्ता तो कठिन नग्न दशाका प्रति. पादन करना वृथा ठहरता है। इसीलिये श्वेताम्बर शास्त्रोंमें वस्त्रधारी साधुओंको ऐसे साधु बतलाये हैं जो सांसारिक बन्धनोंसे छूटनेके लिये प्रोत्साहित होरहे हैं । (Asparing to freedom from bonds) और एक वस्त्रधारी साधुको नग्नभेष धारण करनेका भी परामर्श दिया गया है। दिगम्बर आम्नायमें वस्त्रधारी
१. जैनसूत्र (S. B. B) भाग १ पृष्ठ ५७-५८. २. पूर्व पृष्ठ ६७-६८. ३. पूर्वपृष्ठ ६९-७०. ४. पूर्व पृष्ठ ७१-७२. ५. पूर्व पृष्ठ ७३-७४. ६. पूर्व पृष्ठ १९-७१. ७. पूर्व पृष्ठ १.
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