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(५) सूक्ष्म पौगलिक पदार्थ नहीं माना था; जैसे कि जैनधर्ममे माना गया है । सिद्धान्तोंके अतिरिक्त जाहिरदारीकी मोटी बातोंमें भी दोनों धर्मोमें अन्तर मौजूद रहा है । बौद्ध भिक्षु वस्त्र धारण करते, निमंत्रण स्वीकार करते और मृत पशुओंका मांस भी ग्रहण करते रहे हैं, परन्तु जैन साधु सर्वोच्च दशामें सर्वथा नग्न रहते, निमंत्रण स्वीकार नहीं करते, उद्देशिक भोजन नहीं करते और मांसभोजन सर्वथा नहीं करते रहे हैं। बौद्धसंघ और जैनसंघमे बड़ा अन्तर है । बौद्धसंघमें केवल भिक्षु और भिक्षुणी सम्मिलित थे, परन्तु जैनसंघमें साधु-साध्वियोंके अतिरिक्त श्रावक-श्राविकायें भी सम्मिलित थे। कोई विद्वान् इसी विशेषताके कारण जेनसघका अस्तित्व भारतमें अनेकों आफतें सहकर भी रहते स्वीकार करते हैं। इसी प्रकारके प्रकट भेद जैन और बौद्धमतोंमें मिलते हैं, जिनका दिग्दर्शन प्रस्तुत पुस्तकमें यथासंभव करा दिया गया है । अस्तु,
इस पुस्तकके अन्तमें जो परिशिष्ट बौद्धसाहित्यमें आए हुए जैन उल्लेखोंका दे दिया गया है; उससे जैनसिद्धांतो और नियमोंका परिचय समुचित रूपमें होता है। उनसे स्पष्ट प्रगट है कि जैनसिद्धांत निसप्रकार आजसे ढाई हजार वर्ष पहले भगवान् महावीरजी द्वारा प्रतिपादित हुआ था ठीक उसीप्रकार वह आज हमको मिल रहा है । इतने लम्बे कालान्तरमें भी उसका यथाविधि
रहना उसकी पूर्णता और वैज्ञानिकताका द्योतक है। इससे जैनधर्मकी ___ आर्षता और वैज्ञानिकता प्रमाणित है । इस परिशिष्टको श्रीमान्
जैनधर्मभूषण धर्मदिवाकर ब्र० शीतलप्रसादनीने देखकर हमें उचित ..सम्मतियोंसे अनुग्रहीत किया है, यह प्रगट करते हमें हर्ष है ।