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पहुंचे हैं कि संभवतः जैनधर्म ही भारतका सर्व प्राचीन धर्म है । * अबतक जो शिलालेख आदि मिले हैं उनसे भी जैनधर्मकी वहुप्राचीनताका पता चलता है । इस दशामें यह नहीं कहा जासक्ता कि जैनधर्मकी उत्पत्ति बौद्धधर्मसे या वैदिक धर्मसे हुई थी । इसी तरह भगवान महावीरजीको अथवा श्रीपार्श्वनाथजीको जैनधर्मका संस्थापक कहना निरा भूलभरा है 1
जैनधर्मके किन्हीं सिद्धान्तोकी सदृशता यद्यपि बौद्धधर्ममें मिलती है. परन्तु दोनों ही धर्मोंमें जमीन आस्मानका अंतर है, यह बात पाठकगण प्रस्तुत पुस्तकके पाठसे जान सकेंगे । जिस तरह मबुद्ध और भ० महावीरके जीवनसम्बन्ध बिल्कुल विभिन्न थे वैसे ही उनके धर्म थे, यह व्याख्या आधुनिक प्राच्यविद्याविशारदोको भी मान्य है । + जो सिद्धान्त बौद्धधर्ममें मिलते है जैनधर्म में उनका प्राय. अभाव है । बुद्धके निकट तपश्चरणकी मुख्यता. स्थान नही रखती थी । उनने जैनमुनिकी अवस्थासे भ्रष्ट होकर अपने लिये एक 'मध्यका मार्ग दृढ निकाला था और उसीका, उपदेश अपने शिष्योंको दिया था किन्तु भगवान महावीरने ज्ञान-ध्यानगय साधु - जीवनमें तपश्चरणको भी मुख्य माना थाः यद्यपि ' केवल कायक्लेशको उनने भी बुरा बतलाया था । इसी तरह अहिंसाको यद्यपि म० बुद्धने भी स्वीकार किया था, परन्तु उसका वह व्यापक रूप उनको स्वीकृत नहीं थाः जो उसको जैनधर्ममें नसीव रहा है । कर्मसिद्धान्तको भी म० बुद्धने माना था पर कर्मको एक
देखो 'वीर' वर्ष ३ अंक १२-१३.
+ पेम्ब्रेज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया पृ० १६१.
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