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________________ -और म० युद्ध ] कर रहे थे । एक दिवस ऐसे ही विचारमग्न थे कि सहसा उनको अपने पूर्वमवस स्मरण हो आया और आत्मज्ञान प्रगट हुआ। उन्होंने विनारा कि वो अपूर्व विषयसुखोंसे मंगै कुछ नृप्ति नहीं हुई तो यह सांसारिक क्षणिक इन्द्रियविषयसुख किस तरह मुझे मुनी बना सक्त हैं ? हा ' वृथा ही मैंने यह अपने तीस वर्ष गुना दिये। मनुप्पजन्म अति दुर्लभ है, उसको वृथा गवा देना उनित नहीं । यही बात उत्तरपुराणमें इस प्रकार कही गई है: "त्रिंगछरदिस्तस्यैव कौमारमगमदयः। ननोन्येशुमानज्ञानमयोपगमभेदनः ।। २९६ ।। समुत्पन्नमहाबोधिः स्मृतपूर्वभवांतरः । लोकांनिकापरः पाप्य प्रस्तुतस्तुतिभिः स्तुतः ॥२९७।। मकलामरसंदोहकृतनिश्क्रमणक्रियः । स्ववाकपीणितसदधुसंभावितविसर्जनः ।। २९८ ॥ अर्थात-"इमप्रकार भगवानके कुमारकालके तीस वर्ष व्यतीत हुए। उसके दूसरे ही दिन मतिजानके विशेष क्षयोपशमसे उन्हें आत्मज्ञान प्रगट हुआ और पहिले भवका जातिस्मरण हुआ। उसी समय लौकांतिक देवोंने आकर समयानुसार उनकी स्तुति की और इंद्रादि सव देवोंने आकर उनके दीक्षाकल्याणकका उत्सव मनाया। भगवानने मीठी वाणीसे सब भाईवन्धुओंको प्रसन्न किया और सबसे विदा ली।" इस तरह सबको संतुष्ट करके वे भगवान अपनी चन्द्रप्रभा पालकीपर आरून होकर वनपंड नामक वनमें पहुंचे। वहांपर आपने अपने सब वस्त्राभूषण आदि उतारकर वितरण कर दिये और सिन्होंको नमस्कार करके उत्तराभिमुख हो पंचमुष्टि लोचकर परम
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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