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________________ [ भगवान महावीर - उपासनीय निर्ग्रन्थ मुनि होगये। यह अगहन वदी दशमीका शुभ दिवस था, वास्तवमें संसारका कल्याण जिसके निमित्तसे होना अनिवार्य था और जिसके भवितव्यमें त्रिलोकवन्दनीय होना अंकित था, उसकी प्रत्येक जीवनक्रिया इतनी स्पष्ट और प्रभावशाली हो तो कोई आश्चर्य नही । भगवान महावीर ऐसे ही एक परमोत्कृष्ट महापुरुष थे । वे अपने इस जीवनमे ही अनुपम जीवित परमात्मा हुये थे यह हम अगाडी देखेंगे। _भगवान महावीरने निर्यन्थ मुनिकी दिगम्बरीय (नग्न) दीक्षा गृहण की थी, यह दिगम्बरशास्त्र प्रगट करते हैं, परन्तु श्वेताम्बर संप्रदायके शास्त्र इससे सहमत नहीं है। उनका कथन है कि भगवानने दीक्षासमयसे एक वर्ष और कुछ महीने उपरान्त तक 'देवदृप्य वरन' धारण किये थे, पश्चात् वे नग्न हो गये थे। 'देवदूष्य वनकी व्याख्यामे कुछ भी स्पष्ट रीतिसे नही बतलाया गया है कि इसका यथार्थभाव क्या है ? इतना स्पष्ट किया है कि इस क्त्रको परिने ये भी भगवान नग्न प्रतीत होते है। श्वेतान्यरियोके इस । कथनले एक निष्पक्ष र उनके FREE विधारा नहीं कर ला पदृप्या पहिले हुये भी ये नन्द दिखते थे, इसका स्पष्ट बर्थ दी है कि नग्न थे। १. जेनरात्र (S.BE.) १ ९ ८२ २ डॉ० स्टीवेन्मन साहेबने श्वेताम्बरोके इस कवनपर यही प्रकट किया है, यथा"Jaidas do not understand properly vnat at mcans, ou do not ielu to explain it. It wight have nicapt, he become a Digamvara, had this not been opposed to what follows" (Kalpasutra &Navatattwa. FN.P 85). - - - - --
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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