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[ भगवान महावीरभारतीय मतोमे पारस्परिक स्टर्धा वहुत स्पष्ट और अधिकतापर हो गई थी, अतएव जैनाचार्यका तत्कालीन परिस्थितिके अनुसार म० बुद्धका उक्त प्रकार उल्लेख करना कुछ अनोखी क्रिया नहीं है, परन्तु इसपर भी जो कुछ उन्होने लिखा है, उसमे केवल मद्यपानकी वातको छोडकर शेष सब यथार्थताको लिए हुए हैं । जिस स्थानपर पहिले पहिल म० बुद्धने जैन मुनिकी दीक्षा ग्रहण की थी उसका नाम ठीकसे बतलाया गया है । जैन और बौद्ध दोनो ही उस स्थानको वनग्राम (बौद्ध Forest town और जैन पलाशग्राम-पलाश-वनग्राम ) बतलाते है और कहते हैं कि नदी उसके पासमे थी, जैसे कि हम ऊपर देख चुके है । तथापि वौद्ध शास्त्रकार म० बुद्धकी दीक्षा ग्रहण करनेकी क्रियाका भी उल्लेख "अभिवादन और नियमित क्रियायो और सेवायोसे निवृत्त होने ।" (Haying finished their attentions and dutiful sery. ices) रूपमें करता है, और अतिम वाक्योंके द्वारा जो जैनाचार्यने बौद्ध मान्यताओका उल्लेख किया है, सो भी विलकुल ठीक है। बौद्धधर्मका क्षणिकबाद विख्यात ही है, तथापि बौद्ध धर्ममे प्रारंभसे ही मृत मांसको भोजनमें ग्रहण करना बुरा नहीं बतलाया गया है। जो जैनोके अनुसार एक असद् क्रिया है। इस दशामें हम जैन शास्त्रकारके कथनको मान्यता देनेके लिये वाध्य हैं। इसके साथ ही हमको ज्ञात है कि जब म० बुद्ध सर्व प्रथम अपने धर्म प्रचारके लिये
१ मच्छा और मृतमास, यदि खासकर न 'या गया हो, तो बौद्ध भिक्षु स्वीकार करते थे, यह बौद्धशाम्रोके निम्न उन रणोसे प्रमाणित है.-महाग ६,१.१1 और १४,६,२३,२,६,२५,२, महापरिनिवान मुत्त ४,१७-१८; और सुत्तनिपात २४१ (पृष्ठ ४०)।