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________________ - और म० बुद्ध ] [ ४९ घोषणा करके उसने संसार में सम्पूर्ण पापकर्मकी परिपाटी चलाई । एक पाप करता है और दूसरा उसका फल भोगता है, इस तरहके सिद्धान्तकी कल्पना करके और उससे लोगोको वशमे करके या अपने अनुयायी बनाकर वह मृत्युको प्राप्त हुआ ।" जैन शास्त्रका - रके इस कथनको सहसा हम अस्वीकार नहीं कर सक्ते हैं। अंतिम वाक्योंसे यह स्पष्ट है कि शास्त्रकार बौद्ध धर्म और म० बुद्धका उल्लेख कररहा है, क्योकि 'क्षणिकवाद' बौद्धधर्मका मुख्य लक्षण है जिसका ही प्रतिपादन इन वाक्योंमें किया गया है । इतनेपर भी जो जैन शास्त्रकारने वौद्धोंके प्रति मद्यपान करनेका लाञ्छन लगाया है वह ठीक नही है ।" इसमें किसी प्रकारकी भूल नजर आती है, किन्तु इसके कारण हम उक्त वाक्योकी सर्वथा उपेक्षा नही कर सक्ते ! बेशक यह उस जमानेकी - ईसाकी नवीं शताव्दिकी रचना है, जब १. सिरियासणाइतित्थे सरयूतीरे पलासणयरस्यो । पिहिया सस्स सिस्सो महासुदो वुडकित्तिमुणी ॥ ६ ॥ तिमिपूरणासणेहिं अहिगयपवनाओ परिभट्टो | रत्तवर धरिता पवट्टिय तेण एयत ॥ ७ ॥ मसल्स णत्थि जीवो जहा फजे दहिप-दुद्ध- सक्करए । तम्हात षछित्ता त भक्ततो ण पाविट्ठो ॥ ८ ॥ मन ण वनणिज दवदव्व जहजलं तहा एद । इदि टोए घोसित्ता पट्टिय सव्वसावज ॥ ९ ॥ अध्णो करेदि कम्मं अण्णो त भुजदीदि सिद्धतं । परिकपिउण णूण वसिकिचा निरयमुवण्णो ॥ १० ॥ - दर्शनसार । २ बौद्धों के पच व्रतो में अन्तिम 'मद्यपान त्याग' है । इस कारण यहापर किसी तरह की भूल नज़र पड़ती है । ( महावग्ग ) ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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