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________________ - - और म० बुद्ध [४७ पालन कर रहे हैं तथापि तपश्चरणके भी अभ्यासी है। यह देखकर म० बुद्ध विचारमग्न होगये। उपरांत उन भिक्षुओका अभिवादन और नियमित क्रियाओ-सेवाओ (Having finished ther attentions and dutiful services ) से निर्वृत होकर उनने वही नैरवरा नदीके निकट एक स्थानपर आसन जमा लिया और अपने उद्देश्य सिद्धिके लिये वे तपश्चरण करने लगे। शारीरिक विषय कपायका निरोध करने लगे और शरीर पतिका ध्यान विल्कुल छोड बेठे । 'हृदयकी विशुद्धता पूर्वक वे उन उपवासोंका पालन करने लगे, जिनको कोई गृहस्थ सहन नहीं कर सक्ता । मौन और शांत हुये वे ध्यानमग्न थे । इस रीतिसे उन्होंने भिक्षु' शब्दका व्यवहार जैनों और बौद्धोके लिये पहिले होता था परन्तु उपरान्त केवल वौद्ध साधुओंके लिये ही उसका व्यवहार सीमित हो गया बतलाया गया है । यद्यपि जैन मुनिके पर्याय वाची शक्के रूपमें अव भी इस शब्द ( भिक्षु ) का व्यवहार जैन लेखकों द्वारा होता है । ( देखो वृहद् जैन शब्दार्णव भाग १ पृष्ठ ४ ) मि० होस डेविड का कथन है कि 'भि शब्द पहिले पहिले जनों अथवा वौद्धों द्वारा व्यवहत हुआ था । ( • Perhaps the Jain or the Buddhists first used it." Dialogues of Buddha. Intro. S. B. B. Series ) ऐसी दशाम यहा पर जिन भिक्षु. भोंका उल्लेख छिया जा रहा है वह जैन भिक्षु हों तो कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि म० बुद्धके पहिले बौद्धधर्मका अस्तित्व अभीतक तो प्रमाणित हुमा नहीं हैं । उसको पुष्टि उपरोक्तके अगाड़ी जो विवरण मिलता है, उससे भी होती है । अस्तु यह भिक्षु जैन साधु ही थे। इनके नाम भी जैन साधुओंके ना से मिलते जुलते हैं, यथा कौन्डिन्यकुलपुत्त, दशवल, काश्यप, वाण, अश्वजित और भद। २ बुद्ध जीवन (S. B. E. XIX) पृष्ठ १४१ । ३ पूर्ववत् ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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