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- और म० बुद्ध ]
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दशाओका अंत यही लाती है । इसीको लोग काल कहते हैं । सचमुच कालकी शक्ति अति विचित्र है । कालचक्र सांसारिक परिवर्तनमें एक मुख्य कारण है । इस ही कालचककी कृपा से प्रत्येक क्षणमे संसारका कुछका कुछ होजाता है । ऐसे प्रबल कालचक्रका प्रभाव बडे बड़े आचार्यो और चक्रवर्तियों का भी लिहाज नहीं करता है ।
भगवान महावीर और म० बुद्ध भी इसी कालचक्रकी इच्छानुसार अपने बाल्य और कुमार अवस्थाको त्यागकर पूर्ण युवावस्थाको प्राप्त होगये थे । म० बुद्ध रानी यशोदा के साथ सांसारिक सुखका उपभोग कर रहे थे कि एक दिन वे नगरमे होते हुये वन-विहारके लिये निकले । उन्होने रास्तेमे एक रोगीको देखकर अपने साथसे उसका हाल पूछा । रोगोंके आताप और बुढ़ापेके दुःख सुनकर उनका हृदय व्यथासे व्याकुल होगया । इस आकुल-व्याकुल हृदयको लिए वे अगाडी बढे कि मृत पुरुषको लिए विलाप करते स्मशान भूमिको जाते अनेक मनुष्य दिखाई दिये । सार्थीसे फिर पूछा और हकीकतको जानकर उनका आकुल हृदय एकदम थर्रा गया । उन्होंने कहा जब यह शरीर नश्वर है; युवावस्था हमेशा रहनेकी नही; बुढ़ापे के दुख दर्द सबको सहने पड़ते हैं; तो इससे उत्तम यही है कि उस मार्गका अनुसरण किया जाय जिससे इन जन्मजरा के दुखोको न भुगतना पड़े। इसके साथ ही हृदयपर इन विचारोंका इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि म० बुद्ध फिर लौटकर राजमहलमें अधिक दिन नहीं ठहरे । एक दिन रात्रिके समय छन्न नामक सार्थीको लेकर और घोडे पर सवार होकर निकल पडे । बहुत दूर चलकर आखिर उनने सार्थीके सुपुर्द सब वस्त्राभूषण किये और