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[ भगवान महावीर
दिव्य चरित्रमें जनताको इस आदर्श दर्शन होगये । आजके असयममय बीभत्स वातावरणमें प्रत्येक देशके नवयुवकों के समक्ष ऐसा आदर्श उपस्थित करना परम आवश्यक है । जिस पवित्र भारतवर्ष में भगवान महावीरके दिव्य अखण्ड ब्रह्मचर्या अनुपम आदर्श उपस्थित रहा था, वहीं आज ब्रह्मचर्यका प्रायः सर्वथा अभाव देखकर हृदय थर्रा जाता है । भारतवर्ष के लिये भगवान महावीरका आदर्श परम शिक्षापूर्ण और हितकर है।
इस प्रकार दोनो युगप्रधान पुरुष अपने गृहस्थ जीवनमें सानन्द काल यापन कर रहे थे । भगवान महावीरने अपने गृहस्थ जीवनसे ही संयम और त्यागका अभ्यास करना प्रारम्भ कर दिया था और म० बुद्ध नियमित ढंगसे दाम्पत्यसुखका उपभोग कर रहे थे । अस्तु ।
(३)
गृहत्याग और साधुजीवन ।
मनुष्य अपनी जानमें अपनेको बडा कुशल और चतुर समझता है । वास्तवमें जीवित संसारमें उससे बढ़कर और कोई बुद्धिमान् प्राणी है भी नहीं, किन्तु उसकी बुद्धिमत्ता, कुशलता, और चतुरताके भी खट्टे दांत कर देनेवाली एक शक्ति भी इस संसारमें विद्यमान है । यह शक्ति यद्यपि जीती जागती शक्ति नहीं 'है, परतु इसका प्रभाव स्वयं मनुप्यकी जीती जागती क्रियापर ही जमा हुआ है । मनुष्य अपनी आंखोंसे देखता रहता है और यह शक्ति अपना कार्य करती चली जाती है। उसके जीवनकी