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-और म० बुद्ध
[४३ उन्होंने संसारके कल्याणके लिए अपने सर्वस्वका त्याग करना ही परमावश्यक समझा। माता-पिताने बहुत समझाया परन्तु वैराग्यका गाढ़ा रङ्ग जिसके हृदय पर चढ़ गया हो, फिर वह उतारे नहीं उतरता। भगवान महावीरने विवाह करना अस्वीकार किया । उन्होंने उस समयके रानोन्मत्त युवा राजकुमारों और आवनीविकों तथा ब्राह्मण ऋषियों जैसे साधुओंको मानो पूर्ण ब्रह्मचर्यका महत्व हृदयंगम कराया। जहां ऋषिगण भी इन्द्रियनिग्रह और सयमसे विमुख हों वहां ऐसे आदर्शकी परमावश्यक्ता थी । भगवान महावीरके गई हो । बौद्ध ग्रथोंमें भी भगवान के भाई और जमाई व खी आदिका कोई उल्लेख नहीं मिलता है । तिसपर उस समय सामाजिक वातावरणमें ब्रह्मचर्यका महत्व कम हो चला था । इस तरह अपने अखण्ड ब्रह्मचपैसे मानो उसको शिक्षा देना भगवानको अभीष्ट था । दि. शाख यशोदराके साथ विवाह करनेकी भायोजनाका जिक्र करते है, परन्तु भ० महावीरने स्वीकार नहीं किया यह स्पष्ट कहते हैं -
'भवान किं श्रेणिक वेत्ति भूपति, नृपेन्द्र सिद्धार्थकनीयसीपतिं । इम प्रसिद्ध जितशत्रुमाख्यया, प्रतापपन्त जितशत्रुमण्डलम् ॥ ६ ॥ जिनेन्द्रवीरस्य समुद्भवोत्सवे, तदागतः कुंडपुर मुहृवृत । सुपूजितः कुण्डपुरस्य भभूता नृपोऽययाखण्डलनुयलविक्रमः ॥७॥ यशोदयायां मुतया यशोदया पवित्रत्या वीरविवाहमगलम् । अनेक कन्या परिवाग्याऽऽरुहत्समीक्षितुं तुगमनोरथ तदा ॥ ८ ॥
-हरिवंशपुतण । १ भगवान महावीर पृष्ठ २३९ । २ जैन और बौद्ध प्रथ प्रकट करते हैं कि भाजीविकगण ब्रह्मचर्यको अनावश्यक समझ व्यभिचार रत . होते भी नहीं हिचकते थे। (देखो आजीवक्स माग १) तथापि ब्राह्मण ऋषियोंके पलिया थीं यह सर्व प्रक्ट है। बौद्धोंके मुत्तनिपातके तेविजनुत्तमें इसका स्पष्ट उल्लेख है।