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[ भगवान महावीरभाषण करते थे, यह भी दोनों सम्प्रदायोंके गास्त्रोंमे ज्ञात है।
इस प्रकार जब ये सुन्दर शुभग गरीरके धारी राजकुमार युवावस्थाको प्राप्त हुये तो उनके माता-पिताको उनके पाणिग्रहण करानेकी सुध आई । राना शुद्धोदन अपने पुत्रका विवाह करा देनेमें बड़े व्यन थे, क्योंकि उन्हें भय था कि कहीं वैराग्य उनके पुत्रके कोमल हृदयपर अपना प्रभाव न जमा ले । तदनुसार न बुद्धका शुम विवाह यशोदा नामकी एक रानकन्यासे होगया और वह दाम्पत्य सुखका उपभोग करने लगे। इन्हीं यगोदाके गर्भ और म० बुद्धके औरससे राहुल नामके पुत्रका जन्म हुआ था। भगवान महावीरके माता-पिताको भी उनकी युवावस्था निहारकर विवाह करा देनेकी आयोजना करनी पड़ी थी। देशदेशांतरोंके राजागण अपनी कन्याओंको भगवानके साथ परणवाना चाहते थे। इनमें प्रख्यात राजा नितशत्रु अपनी कन्या यशोदाको विशेष गति और आमहसे भगवानको समर्पण करना चाहते थे; परन्तु विशिष्ट ज्ञानी, त्यागी प्रत्यक्ष मुर्ति भगवान महावीरको यह रमणीरत्न भीन मोह सका!
१ वुद जीवन (S. B.E. XIX ) पृ० १२ इत्याद । २ श्वेताम्बर शानोमे कहा गया है कि भगवानने अपने मातापिताके भाप्रहसे यशोदरा नामक कन्यांसे पाणिग्रहण कर लिया था
और उनके एक पुत्रीको भी जन्म हुर्भा था। उपरान्त जब उनके माता-पिता स्वर्गवास कर गये आप अपने भाई नन्दिवदनकी अनुमतिसे उन्होंने गृहत्याग कर मुनिव्रत धारण किया था। इस मतभेदका कारण समझमें नहीं भाता । दिगम्बर शास अन्य तीर्यवरोका विवाह होना बतलाते हैं, परन्तु उनके पुत्रीका जन्म होना स्वीकार नहीं करते । संभव है कि इसी सिद्धान्तभेदको पुष्टि देनेके लिये श्वे० प्रन्यों में यह कमा लिसी