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-और म० बुद्ध ]
[४१ वंदना करके अपने स्थानको चला गया । भगवानका यह बाल्यावस्थाका चरित्र हमारे लिए एक अत्युत्तम अनुकरणीय आदर्श है।'
कुमारकालमें दोनों ही युगप्रधान पुरुषोंने किस प्रकारकी शिक्षा ग्रहणकी यह ज्ञात नहीं है । भगवान महावीरके विषयमें जैन शास्त्रोंमें कहा गया है कि वह जन्मसे ही मति, श्रुति और अवधिज्ञानकर संयुक्त थे। इस अपेक्षा उनका ज्ञान बाल्यावस्थासे ही विशिष्ट था। इसमें संशय नहीं कि उस समय जो शिक्षायें और कलायें प्रचलित थीं, उनमें ये दोनों युगप्रधान पुरुष पारांगत थे । साथ ही इन दोनोंका शारीरिक बल और सौन्दर्य भी अपनी सानीका निराला था । म० बुद्धके विषयमे कहा गया है कि वे जन्मसे ही महापुरुपके बत्तीस लक्षणोंकर संयुक्त सुंदर शरीरके धारी थे। भगवान महावीरके विषयमें भी हमें विदित है कि वे एक हजार आठ लक्षणो कर चिन्हित थे और उनके शरीरकी आकति और शोभा अपूर्व थी । उन्होंने अपने पूर्व जन्मोंमें इतना विशेष .पुन्य उपार्जन किया था कि उनका शरीर विल्कुल विशुद्ध, मलमूत्र आदिकी वाधाओंसे रहित था । प्रत्युत उनके शरीरसे हर समय एक अच्छी सुगंध निकलती रहती थी। उनके शरीरका रुधिर दुग्धवत था । उनका पराक्रम अतुल था और शरीरमे क्षति पहुंचना असंभव थी। म० बुद्ध और भ० महावीर सदैव मिष्ट
१ भगवान महावीरके विशद दिव्य चरित्रके लिये 'उत्तरपुराण' 'महावीर पुराण', 'महावीरचरित' और 'भगवान महावीर' नामक ग्रन्थ देखना चाहिये । २ महावीरपुराण । ३ बुद्ध जीवन (S. B.E. XIX) पृ० १२ इत्यादि । ४ उत्तरपुराण पृ० १०७ और जैनसुत्र (S. B.E.) भाग १ पृष्ठ २५०-२५२ ।