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________________ ४० ] [ भगवान महावीर - भगवान महावीरके विषयमें भी हमें ज्ञात है कि वे अपनी कौमारावस्थामें राजकुमारों, मंत्रीपुत्रो और देवसहचरोंके साथ अनेक प्रकारकी क्रीड़ायें करते थे । स्वाधीन क्षत्रीयकुलमें परमोच्चपदवीको प्राप्त करनेके लिये जन्म लेकर उन्होंने अपने बाल्यजीवनसे ही अहिंसा, त्याग और शौर्यत्वका आदर्श लोगोंके समक्ष रक्खा था । आठ वर्षकी नन्हींसी अवस्थामें ही उन्होंने जानबूझकर किसीके प्राणोंको पीडा न पहुंचानेका संकल्प कर लिया था । दृढ़ निश्चय कर लिया था कि किसी दशामें भी जान बूझकर प्राणि हिसा नहीं करूगा और सदैव सत्यका ही अभ्यास करूगा । पराई वस्तु ग्रहण करके वे किसीको मानसिक दुःख नहीं पहुचाते थे । पूर्ण ब्रह्मचर्यका पालन करते हुये, वे विलासिता और वासनातृप्तिसे कोसो दूर थे । परिमितरूपमें वे आवश्यक सामग्रीको रखते थे । शौकके लिये अनावश्यक वस्तुओंके ढेर एकत्रित नही करते थे । ऐसा संयममय जीवन व्यतीत करते हुये, वे वीर भेषमें कुमारकालीन क्रीडायें करते विचरते थे । एक दिवस राज्योद्यानमे वे अपने अन्य सहचरों सहित क्रीडा कररहे थे कि एक ओरसे विकराल सर्प उनपर आ धमका | विचारे अन्य सखा भयभीत हो इधर उधर भाग निकले; परन्तु भगवान महावीर जरा भी भयभीत नहीं हुये । उन्होने घातकी बातमें उस विषधरको वश कर लिया और उसपर दया करके उसे वैसा ही छोड़ दिया । वास्तवमें यह स्वर्गलोकका एक देव था, जो भगवानके दयालु चित्त और अपूर्व बलशाली शरीरकी प्रसिद्धि सुनकर इनकी परीक्षा लेने आया था । इसतरह भगवानकी परीक्षा करके वह विशेष हर्षित हुआ और भगवानकी
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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