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- और म० बुद्ध ]
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इस तरह स्वाधीन गणराज्योमे प्रधान प्रमुख राजाओंके समृद्धशाली क्षत्रिय कुलो में जन्म लेकर दोनों ही युगप्रधान पुरुष दिनोंदिन चन्द्रमाकी भांति बढ़ रहे थे । शीघ्र ही ये कौमार अवस्थाको प्राप्त हुये और कौमारकालकी निश्चिन्त रंगरलियों में व्यस्त होगये, किन्तु आजकलके युवकों की भांति विलासिताकी आधीनता इनके निकट छू भी नहीं गई थी । यह हो भी कैसे सक्ता था ? वे स्वाधीन वातावरणमें जन्म लिये युगप्रधान पुरुष थे; और आजकलके युवक परतंत्रताके आधीन अल्प भाग्यवान् व्यक्तियां हैं । इसलिए इनके शरीर और मन सर्वथा गुलामीकी बूसे भरे हुये हैं । वस्तुतः इन विलासिताके गुलाम युवकोंके लिये इन दोनों युगप्रधान पुरुषों के बालपनके चरित्र अनुकरणीय आदर्श हैं ।
कौमारावस्थामें म० बुद्ध अपने कुलके अन्य राजपुत्रोके साथ आनन्दसे क्रीडायें किया करते थे । स्वाधीन अहिसाप्रिय कुलमें जन्म लेकर उनका हृदय पितृसंस्कृतिके अनुरूप अति कोमल और दयार्द्र था । एक दिवस वह अपने चचेरे भाई देवदत्तके साथ घर्नुकौशलका अभ्यास कौतूहलवश कर रहे थे । यकायक देवदत्तने एक बाण उड़ते हुये पक्षीके मार दिया । वह बेचारा निरापराध पक्षी धडामसे इन दोनोंके अगाडी आ गिरा ! बुद्धके लिये वह करुणाजनक दृश्यं अश्रुत और असह्य था । वह झटसे उस घायल पक्षीकी ओर लपके और देवदत्तके इस दुष्कृत्यपर घृणा प्रकट करते हुए उस घायलपक्षीके शरीरमेंसे वाण खींच लिया और उसकी उचित सुश्रूषा की । दयाका क्या अच्छा नमूना है ! आजके नवयुवकोंको भी निरपराध पशुओंके प्राण लेनेका. शौक चर्राया हुआ है ! उन्हें म० बुद्धके इस चरित्रसे शिक्षा लेना आवश्यक है ।