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[भगवान महावीर
होगया था, पृथ्वी किंचित् हिल गई थी और सब जीवोंको क्षणभरके लिए परम शातिका अनुभव मिल गया था। इस समय भी एव अन्य दीक्षा धारण, केवलज्ञान प्राप्ति और मोक्षलाभके अवसरोंपर भी देवगणोंने आकर उत्सव मनाये थे।'
म. बुद्धका पूर्ण नाम गौतमबुद्ध था और वह सिद्धार्थके नामसे भी ज्ञात थे, किन्तु उनकी प्रख्याति आजकल केवल म बुद्धके नामसे होरही है। यद्यपि वस्तुतः यह उनका एक विशेषण ही है, जैसे भगवान महावीरको तीर्थकर बतलाना । बौद्धधर्ममें बुद्ध शब्दका प्रयोग इसी तरह हुआ है जिस तरह 'तीर्थकर' शब्दका व्यवहार जैनधर्म में होता है । तथापि जिस तरह जैन शास्त्रोंमें भगवान महावीरके पूर्वभवोंका दिग्दर्शन कराया गया है-उसी तरह म० गौतम बुद्धके भी पूर्वभवकी कथायें बौद्ध साहित्यमें “जातक कथाओं" के नामसे विख्यात हैं । म० बुद्धने भी तिर्यश्च, मनुप्य,देव आदि कितनी ही योनियोंमें जीवन व्यतीत करके अन्ततः देव योनिसे चयकर राजा शुद्धोदनके यहां जन्म धारण किया था । कहा जाता है कि इस घटनासे बीस 'मसंख्य-कप-लक्ष' अर्थात् वुद्ध होने के 'मनोपरिनिदान' से अपने जन्मतक बुद्धने तीस 'पारिमिताओं' का पूर्ण पालन किया था, तब ही वह बुद्ध हुये थे। यह पारिमितायें'
मूलमें दस हैं; परन्तु साधारण, उर और परमार्थक भेदसे-वे ही तीस - प्रकारकी है। बुह पदको प्राप्त होनेके लिए उनका पालन कर,लेना आवश्यक है। वे यह हैं, (१) दानपारिमिता-चौद्धोंके तीन प्रका
१ उत्तरपुराण पृष्ट -६०५-६१४ भौर जैनसूत्र (S. RE) माग पृट-२१०-२७० ।