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[ भगवान महावीरभी मौजूद थे जो वर्षभरके लिए एक हाथीको मारकर रख छोड़ते थे और उसी द्वारा उदरपूर्ति करते हुए साधु होनेकी हामी भरते थे।
सारांशतः यह प्रकट है कि उस समय धार्मिक प्रवृत्ति भी बड़ी ही नाजुक अवस्थामें हो रही थी। भगवान महावीर और म० बुद्धके समय उपरोक्त मत प्रवर्तकों द्वारा इसका सुधार नहीं हो पाया था। परिणामतः इस सामाजिक और धार्मिक क्रान्तिके अवसर पर म• बुद्धने परिस्थितिको बहुत कुछ सुधारा और फिर भगवान महावीरके दिव्योपदेशसे जनता-यथार्थताको पागई और अपनी सुखसमृद्धशाली दशामें सामाजिक उदारता और आत्मिक स्वाधीनताके सुख-स्वप्नमें लीन होगई । अतएव निनके पृष्ठोमें हम तुलनात्मक रीतिसे म० बुद्ध और भगवान महावीरके जीवनों और उनके सिद्धान्तोंपर एकदृष्टि डालेंगे।
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This Combined with other arguments, leads us to the opinion that the Nirgranthas were really in existence long before Mahavira, who was the reformer of the already existing sect. ” (Ind. Ant. Vol. IX. P. 162).
१ जैन सत्र (स्त्रवाट २-५-५२ S. B.E.) पृष्ठ ४९८ ।